जनवरी 02, 2012

कोई नया ख़त

पुराने ख़तों की गर्द जब उड़ती है
आंखों में कोई याद सी चुभती है
बड़े दिन हुए, न आया डाकिया
क्या भूल गया है तू घर का पता
नए संदेशे आएंगे तो जरूर
नए मौसम की खबर कोई तो भेजेगा।

बंद लिफाफे में,
खुशियों की आहट होगी।
कोरे पन्ने पर,
शोख मुस्कराहट होगी।
जो भीनी खुश्बू में भीगा होगा।
वो ख़त जरूर मेरा होगा।
तेरी खुशियों के झोले में
डाकिया देख मेरा कोई ख़त तो नहीं!

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।

    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

    सादर

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  2. इंतज़ार एक ख़त का ...सुंदर भाव !

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  3. दीपिका जी

    एक संवेदन शील कवि ह्रदय लेखिका के ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ और आपकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुआ हूँ...आपकी रचनाएँ भाषा और शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ हैं...मेरी बधाई स्वीकारें.

    "एक कली दो पत्तियां " बरसों पहले पढ़े मुल्क राज आनंद के प्रसिद्द उपन्यास " टू लीव्ज़ एंड ऐ बड " की याद ताज़ा कर गया. चाय बागानों में काम करने वालों की ज़िन्दगी पर लिखा ये उनका बहु चर्चित उपन्यास था.
    यूँ ही लिखती रहें.

    नीरज

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  4. बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी इन हौसला बढ़ाने वाली पंक्तियों के लिए..

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  5. बहुत ही भावपूर्ण कविता! आपके ब्लॉग पर आ कर अच्छा लगा!

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  6. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

    वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

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  7. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ...एक यही रचना पढ़ आपका ब्लॉग फोलो करने का दिल चाहा..कि भविष्य में भी ऐसा ही अच्छा पढ़ने मिलेगा..
    शुभकामनाये.

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  8. बहुत खूबसूरत..
    बड़ा अच्छा लगा आपका ब्लॉग और कवितायें(जितनी आज पढ़ी)

    ब्लॉग-डिस्क्रिपसन बेहतरीन है, और ब्लॉग का नाम खूबसूरत..

    ये बात बताने के लिए शुक्रिया -
    "शायद कम ही लोगों को पता होगा कि बेहतरीन चाय के लिए असंख्य पत्तों वाले एक झाड़ से सिर्फ दो पत्तियां और एक कली तोड़ी जाती है।"

    :)

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