जब नन्ही उंगलियां
गंदे मटमैले धोती के टुकड़े से
गरम हंडिया पकड़
पसाती हैं भात
संतुलन में टेढ़ी हंडिया थामे
पकती उंगलियां
हड़बड़ी नहीं दिखातीं
पीती है धीमे धीमे
नथुनों से गर्म माड़ की खुश्बू
हंडिया नहीं छोड़ती
गरीब की लड़की
आखिरी बूंद के टपक जाने तक
एकटक हंडिया पर नजरें जमाए
सटकर उकड़ू बैठे
छोटे भाई-बहनों को आंख दिखाती है
और भात मांगते छोटे भाई को
थप्पड़ जमाती गरीब की लड़की
डाल देती है उसकी थाली में
अपने हिस्से का एक करछुल भात
जानती है
कि आज भी उसे
माड़ से मिटानी होगी भूख
म्युनिसिपैलिटी के नल से पानी भरते हुए
गरीब की लड़की
रोज नुक्कड़ से देखती है
स्कूल जाती लड़कियों को
उसे नहीं लुभाते
कड़क प्रेस की हुई स्कूल ड्रेस
या बार्बी वाले बैग
उसकी आंखें जमी हैं
बैग से झांकते लंच बॉक्स पर
ख्वाबों में देखती है
प्लास्टिक के हरे-नीले जादुई डिब्बे में
आलू के परांठे
वेजिटेबल सैंडविच
गरीब की लड़की
नहीं जानती बराबरी का हक
नारी सशक्तीकरण
उसे नहीं चाहिए आसमान
वह चाहती है थोड़ी सी जमीन
वह प्यार नहीं करती
उसे करनी है शादी
जहां वह दबाएगी पैर
बिछ जाएगी आदमी की देह तले
और खा पाएगी
पेट भर भात
शायद
पेट भरा हो तभी कुछ सूझता है।
जवाब देंहटाएं:-(
जवाब देंहटाएंसच निःशब्द हूँ.......कुछ रिस सा गया मन में...
अनु
बेहद मार्मिक रचना...
जवाब देंहटाएंवाह !!! बहुत सुंदर निशब्द करती रचना,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : पाँच( दोहे )
सबसे पहले हो भूख का समाधान!
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी चित्रण!
गरीब की लड़की
जवाब देंहटाएंनहीं जानती बराबरी का हक
नारी सशक्तीकरण
उसे नहीं चाहिए आसमान
वह चाहती है थोड़ी सी जमीन
वह प्यार नहीं करती
उसे करनी है शादी
जहां वह दबाएगी पैर
बिछ जाएगी आदमी की देह तले
और खा पाएगी
पेट भर भात … सत्य सा स्तब्ध
बेहद मार्मिक रचना .....आँखों में नमी सी आ गयी .
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक रचना...
जवाब देंहटाएंयही तो मुख्य समस्या है, पेट की भूख में सब अरमान स्वाहा हो जाते हैं, अत्यंत मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति। बेहतरीन रचना।..बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें-
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
सत्य को चित्रित करती मार्मिक प्रस्तुति .. उम्दा रचना ..
जवाब देंहटाएंनारी चेतना
स्वर्णिम पैजनियाँ
वही वेदना
शुभ् कामनाये ..जै श्री कृष्ना :)
दीपिका जी,
जवाब देंहटाएं"शायद गरीबी ही जानती है,गर्म माड़ की खुशबू'
"गरीब की लड़की"
सिर्फ कविता नहीं, जीवन और मानवीय संबंधो का साक्षात्कार भी है,
एक बेहतर कविता,
शुभकामनाये
ओह!! आँखें नम हो गयीं...कड़वी सच्चाई है पर ये नारी सशस्तीकरण ,अधिकारों की मांग सब पेट भरे हों तभी सूझते हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक कविता .
मार्मिक ... सजीव चित्रण किया है गरीबी की झीनी चादर में लिपटी लड़की का ... कड़वी सचाई है ये, हकीकत जो डराती है ...
जवाब देंहटाएंकाफी मर्मस्पर्शी कविता है । हाँ आजकल गरीब की लडकी जान तो सब कुछ रही है लेकिन यथार्थ की कडवी गोली निगलने के लिये पानी नही है उसके पास..। पानी की तलाश में अब वह बेचैन है ।
जवाब देंहटाएंदीपिका जी मैं सोच रही थी कि आपकी सुन्दर रचनाएं नही पढ पारही हूँ । आज ही अनुशरण कर रही हूँ ।
अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंअगर हम जिन्दगी को गौर से देखें तो यह एक कोलाज की तरह ही है. अच्छे -बुरे लोगों का साथ ,खुशनुमा और दुखभरे समय के रंग,और भी बहुत कुछ जो सब एक साथ ही चलता रहता है.
http://dehatrkj.blogspot.in/2013/09/blog-post.html
निशब्द कर देनेवाली रचना
जवाब देंहटाएंtouching composition !
जवाब देंहटाएंमन को छूती रचना..
जवाब देंहटाएंआज 23/009/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
उसे करनी है शादी
जवाब देंहटाएंजहां वह दबाएगी पैर
बिछ जाएगी आदमी की देह तले
और खा पाएगी
पेट भर भात
शायद
कटु सत्य ,बहुत कम लोग समझते हैं
Latest post हे निराकार!
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मार्मिक चित्रण !!
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम
उफ़्फ़ अत्यंत मार्मिक पोस्ट दिल छु गयी यह रचना सच्चाई का आईना दिखती पोस्ट...
जवाब देंहटाएंस्तब्ध हूँ .....
जवाब देंहटाएंitna maarmik chitran...
जवाब देंहटाएंbahut sundar...
Ati sanvedanshil rachna......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं.
very nice... thanks for sharing..
जवाब देंहटाएंPlease visit my site and share your views... Thanks
God makes beautiful things ! Thanks for sharing
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक रचना... ग़रीबी के दिन याद आ गए । याद की गागर रिसने लगी और मन भर आया।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
जवाब देंहटाएंसारी रचनाएँ पढ़ूँगी
सादर