काफी समय से ख़ामोश ब्लॉग पर एक नई शुरुआत कुछ तुकबंदियों के साथ...
याद चंचल हो गई
रात बेकल हो गई
इश्क का चर्चा चला
हवा संदल हो गई
ज़िक्र जब तेरा हुआ
आंख बादल हो गई
चाप सुनकर बेसबर
देख सांकल हो गई
ख्वाब की तन्हाई में
आज हलचल हो गई
एक ठिठकी सी ग़ज़ल
अब मुकम्मल हो गई
स्वागत है ... छोटी बहार के साथ धमाकेदार ग़ज़ल से आगाज़ ...
जवाब देंहटाएंप्यारी सी ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंकाफी से अधिक बेहतरीन
कृपया मुकम्मल शीर्षक डाल दिया करें
सादर
लिखती रहें लगातार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. सरलता में अद्भुत शक्ति छुपी होती. ग़ज़ल के सभी शेर लाज़वाब हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंपता नहीं मुझसे कैसे छूट गयी ये पोस्ट... बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने... इस बहर में कही ग़ज़ल मुझे हमेशा अच्छी लगती है... कम लफ़्ज़ों में बात कहने का हुनर इस बहर में कही ग़ज़ल से चलता है!
जवाब देंहटाएंतमाम अशआर एक से बढ़कर एक हैं! और आम अल्फ़ाज़ में इतनी संजीदगी से आपने अपनीबात कही है बस वाह निकलती है मुँह से!
ढेर सारा स्नेह और अनुरोध लिखते रहने का!!
बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आपने जनवरी में ही वापसी की! :)
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर ग़ज़ल है ये!!! Lovely!!
बहुत खूब ,
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
एक ठिठकी सी ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंअब मुकम्मल हो गई ... सच में पूरी की पूरी मुकम्मल
आपने २०१७ में ब्लॉग पर वापसी की, और मैंने आखिरी बार आपका ब्लॉग २०१५ में पढ़ा था। उसके बाद पता नहीं आपका, 'मैं घुमंतू' अनु जी का, और पूजा का ब्लॉग का पता और बुकमार्क दोनों गुम गया ।
जवाब देंहटाएंअब सारे छूट गए पोस्ट से 'कैचिंग अप' करना है ...