इस ब्लॉग का शीर्षक महान संगीतकार भूपेन हजारिका को समर्पित है, जिन्होंने शायद पहली बार चाय बागान की खूबसूरती को इस सरल से गीत में ढाला था 'एक कली दो पत्तियां, नाजुक नाजुक उंगलियां'। कम ही लोगों को पता होगा कि बेहतरीन चाय के लिए एक पौधे से सिर्फ दो पत्तियां और एक कली तोड़ी जाती है।
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अगस्त 30, 2018
जनवरी 29, 2017
ग़ज़ल
काफी समय से ख़ामोश ब्लॉग पर एक नई शुरुआत कुछ तुकबंदियों के साथ...
याद चंचल हो गई
रात बेकल हो गई
इश्क का चर्चा चला
हवा संदल हो गई
ज़िक्र जब तेरा हुआ
आंख बादल हो गई
चाप सुनकर बेसबर
देख सांकल हो गई
ख्वाब की तन्हाई में
आज हलचल हो गई
एक ठिठकी सी ग़ज़ल
अब मुकम्मल हो गई
जून 27, 2014
हिज्र का मौसम बुरा था
चांद खिड़की पर खड़ा था
मगर अंधेरा बड़ा था
चांदनी थी कसमसाती
रात का पहरा कड़ा था
उन चरागों को कहें क्या
ज़ोर जिनका इक ज़रा था
जब सुलगती थी हवा भी
हिज्र का मौसम बुरा था
पुराना इक ख़त गुलाबी
मेज़ पर औंधा पड़ा था
टीस रह रह कर उठी थी
जख्म अब तक भी हरा था
नींद पलकों से उड़ी थी
रंग ख्वाबों का उड़ा था
इस अंधेरी रात से पर
भोर का सपना जुड़ा था
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