कई बार सोचा निकाल फेंकूं
बदन पर जोंक की तरह लगी
कुछ लाल, पीली, गुलाबी कांच की गोलियां
उन्हें खींचने के चक्कर में लहूलुहान हो जाती हूं खुद ही
कभी ख्याल आता है, काश कोई तूफान
झाड़-पोंछ ले जाए दिमाग से पुरानी इबारतें
और एक नई स्लेट बना दे मुझे
...
शाम के धुंधलके में मेरे आगे फैलती है एक हथेली
जानी-पहचानी, भरोसेमंद हथेली
उस पर फैली ढेर सारी कांच की गोलियां
मेरी आंखों में अचानक उग आते हैं जुगनू
नन्हीं उंगलियां आगे बढ़ती हैं
मेरी नजरें एकटक जमी हैं उस कांच की गोली पर
हलकी सिंदूरी गोली
जैसे अलसुबह झील में उतरता है सूरज।
उसे पाने के लिए मगर जरूरी है एक खेल
(यह बताया गया है मुझे)
कि भले ही मुझे अजीब लगे
मगर इसे खेलने से मिलती हैं टॉफियां, खिलौने
और मेरी पसंदीदा कांच की गोलियां
जानी पहचानी हथेली अचानक अजनबी हो जाती है
किसी किताब में देखी भेड़िए की आंखें याद आ गई है मुझे
डर कर आंखें बंद कर ली हैं मैंने
कसी हुई मुट्ठी में पसीज रही है सिंदूरी गोली।
फिर आसमानी
फिर हरी, फिर सिलेटी, फिर गुलाबी
एक-एक कर जमा होती कांच की गोलियों से
भर रहा है मेरा खजाना
मगर कुछ खाली हो रहा है भीतर
गले में अटक गया है दर्द का एक गोला
न बाहर आता है
न भीतर जाता है
कोहरे ने ढक लिया है मेरा वजूद
हर खटके पर बढ़ जाती हैं धड़कनें
हर दिन, हर पल
जंजीरों में कैद है मेरी रूह
एक दिन उस गोले को निगलकर
धड़कनों पर काबू करके
चमकती नारंगी गोली से नजरें हटाकर
मैं फेंक आती हूं सारी कांच की गोलियां उस हथेली पर।
डर ने अचानक पाला बदल लिया है
अंधेरे में भी साफ साफ दिखता है, स्याह पड़ता चेहरा
दोनों हथेलियां सिमट रही हैं पीछे की ओर
कदम वापस मुड़ रहे हैं
और मैं सांस ले पा रही हूं।
दीपिका जी ,यादों और अनुभूतियों से मुक्ति आसान नहीं है चाहे वे मीठी हों या कडवी . उनका मधुर होना खुशकिस्मती ही है . कविता अच्छी है लेकिन काफी गहरी है . पता नहीं यह दृष्टि भी आपके अभीष्ट कथ्य तक पहुंची है या नहीं .
जवाब देंहटाएंगिरिजाजी शायद यह कोई कविता ही नहीं है। जब कोई स्त्री या बच्ची बाहरी दुनिया में दरिंदगी का शिकार होती है, तो उसके पास एक सपोर्ट सिस्टम होता है, अपने घरवालों के रूप में। मगर जब एक बच्ची अपने ही घर में, अपने जाने-पहचाने लोगों द्वारा शोषण का शिकार होती है, तो यह हमेशा के लिए उसकी जिंदगी को ही विकलांग बना जाता है। कविता बन पाई या नहीं, यह पता नहीं मगर उस भयावहता को महसूस करना चाहा है।
हटाएंदीपिका जी , अब सब स्पष्ट है . आपने उस वीभत्स व भयानक घटना को अपने तरीके से व्यक्त किया है जो निश्चित ही अपने आप में विशिष्ट है . बेशक यह विषय है ही आहत कर देने वाला .
हटाएंदीपिका जी! दो बार पढने के बाद लगा कि मैं कुछ-कुछ समझ पा रहा हूँ. लेकिन यह विषय मुझे आहत करता है और उसपर बींध देता है आपका वर्णन. कविता की पहली पंक्ति से आख़िरी पंक्ति तक साँसें रुकी रहीं और कविता दो बार पढने के बाद वही लिजलिजा एहसास होने लगा अन्दर से जो हमेशा आप्की कविताओं को पढते हुये होता है. हालाँकि आदरणीय गिरिजा दी मना करती है6 उन भावों को मन में लाने के लिये... लेकिन दिल है कि मानता नहीं!
जवाब देंहटाएंआशीष है मेरा आपको और परमात्मा से प्रार्थना है कि अपनी कविता की इस सचाई का विस्तार हो अपार और सार्थक कर सके नारी का वह रूप जो अपने अन्दर वो सारी विकृतियाँ समेट लेती है समाज की और सुरसरि कहलाती है!
ये कविता नहीं एक दस्तावेज है एक पूरी पीढ़ी का ... एक उम्र का जिसने झेला है समय की त्रासदी को ... अंतिम लाइनें शायद चाह रही हैं की बस अब और नहीं झेलना इस यंत्रणा को ... कांच की गोलियां काश बन्दूक की गोलियां बन सकें ...
जवाब देंहटाएंकांच की गोलिया एक बहुत ही सार्थक और उम्दा रचना है। इस रचना के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना..
जवाब देंहटाएंकई बार पड़ा तब शायद भावार्थ कुछ समझ पाया...
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जवाब देंहटाएंHerbal remedies
वाह दीपिका जी अति उत्तम खास कर ये पंक्तियाँ को लाजवाब हैं....!!
जवाब देंहटाएंहर खटके पर बढ़ जाती हैं धड़कनें
हर दिन, हर पल
जंजीरों में कैद है मेरी रूह
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंGreat job to attract the visitors. Lots of thank from my Smart Lifestyle site.
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर ........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंनमस्ते मेरा नाम सागर बारड हैं में पुणे में स्थित एक पत्रकारिकता का स्टूडेंट हूँ.
जवाब देंहटाएंमेंने आपका ब्लॉग पढ़ा और काफी प्रेरित हुआ हूँ.
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जवाब देंहटाएंकुरेद गई ये रचना हृदय के अंतस को
जवाब देंहटाएंकांच की गोलियां खोने का मलाल है। .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यादें
कुरेद ये कविता दूर तक कहीं अंतस को। कुछ चोट ऐसी होती हैं, दर्द खत्म नहीं होता उनका।
जवाब देंहटाएंआइ होप ये मात्र कविता भर ही है, कोई दस्तावेज़ नहीं ! 😢
nice info!! can't wait to your next post!
जवाब देंहटाएंcomment by: muhammad solehuddin
greetings from malaysia