जनवरी 12, 2014

फर्क




वह आया
ढोल नगाड़ों के साथ
बरसों की मन्नतों
पीर फकीर के चढ़ावों
देवताओं को दिए रिश्वतों से
अस्पताल के एक वातानुकूलित कमरे में
झक सफेद चादर पर
यह उग आया
एक मादा कोख में
बरसाती घास की तरह।

वह जाता है कान्वेंट स्कूल
दूध टोस्ट खा कर
इस्तिरी की हुई यूनिफार्म पहन
सुंदर स्कूल बैग
नीली पीली पानी की बोतल लटकाए
यह आंखें मलते हुए
निगलता है रात की बची रोटी
बिना दूध की चाय के साथ
और बाल्टी उठा चल देता है
म्युनिसिपिलिटी के नल की ओर

वह जाता है डोनेशन वाले इंजीनियरिंग कॉलेज
खरीदता है
ब्रांडेड जींस
लेटेस्ट गैजेट्स
सीखता है दोस्तों से
गर्लफ्रेंड्स पटाने के नुस्खे
यह लगाता है सब्जी की रेहड़ी
खरीदता है मंडी से
थोक भाव में आलू प्याज
सीखता है अपने बाप से
फ्री की धनिया मिर्च से
मोहल्ले की आंटियों को पटाना।

वह बनाता है इमारतों के नक्शे
यह ढोता है ईंट गारा
यह जाति का चक्र टूटता नहीं
वह अमीर है, यह गरीब।

(चित्र गूगल से साभार)