दुनिया के हर रंग से बेखबर
एक कोने में चुपचाप खड़ा था
वह खाली कैनवास।
कुछ दूर टंगे थे
कुछ चंपई चेहरे
कुछ भूरी आंखें
रोज़ कुछ लकीरें उभरतीं
रोज कुछ रंग बिखरते
और तैयार होती एक मुकम्मल तस्वीर।
हसरत से देखता रहता
वह खाली कैनवास।
एक दिन खिड़कियां खुलीं
और अंदर घुस आया
धूप का एक शरारती टुकड़ा..
शबे-फ़ुरकत गुज़र चुकी थी।
आंखें मिचमिचाकर खुली ही थीं कि
जादुई उंगलियों ने प्यार से छुआ
खाली कैनवास को।
कुछ नक्श कुनमुनाए,
कुछ रंग चहके।
कलाकार ने पहना दिया उसे सुर्ख जोड़ा
और उसके बेवा सपने सुहागन हो गए।
अब तस्वीर बन चुका था
वह खाली कैनवास।
अब वह बेचारा नहीं, बेरंग नहीं
मगर फख्र से
अपने सीने पर बिखरे रंग
दुनिया को दिखाता कैनवास
अपनी पहचान खो चुका है।
लोग अब उसे तस्वीर कहते हैं।
क्या किसी ने देखा है,
तस्वीर के पीछे?
रंगों और लकीरों की जिम्मेदारी ढोता कैनवास
आज भी कहीं अकेला है।
excellent!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब रचना...
कैनवास को जीवित कर दिया आपके शब्दों ने..
सस्नेह.
सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना,..
जवाब देंहटाएंNEW POST --26 जनवरी आया है....
zindgee bhee canvass se kam nahee
जवाब देंहटाएंbhinn rangon se sazee
ant mein khaalee kee khaalee ....dhool mein miljaatee
आप की कृति "खाली कैनवास"पड़ी ,क्या अंदाज़े बयाँ है |
हटाएंरंग और लकीरों की जिमेदारी को ढोता हुआ कैनवास आज भी अकेला है |
मैं एक नया ब्लोगेर हूँ ,आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं |
मेरे ब्लॉग का पता है ---http//kumar2291937.blogspot.com
दुनिया के हर रंग से बेखबर
जवाब देंहटाएंएक कोने में चुपचाप खड़ा था
वह खाली कैनवस।
कुछ दूर टंगे थे
कुछ चंपई चेहरे
कुछ भूरी आंखें
रोज़ कुछ लकीरें उभरतीं
रोज कुछ रंग बिखरते
और तैयार होती एक मुकम्मल तस्वीर।
हसरत से देखता रहता
वह खाली कैनवस।
दीपिका जी बहुत ही सुन्दर कविता बधाई |
कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह जाती हैं रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....!
बहुत ही बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
हर कैनवास चाहता है कि कोई चित्रकार आये और जीवन को रंगों से भर दे। रंग निरर्थक लगने लगे तभी वह महसूस कर पाता है कि वह तो एक कैनवास है।
जवाब देंहटाएंकलाकार ने पहना दिया उसे सुर्ख जोड़ा
जवाब देंहटाएंऔर उसके बेवा सपने सुहागन हो गए।
कलि की दो पत्तीओं पर आज केनवास की उदासी बड़ी खूबसूरती से पेश की है !! बहुत सुन्दर !!
आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूँ । भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय कोलकाता में मैं भी अनुवादक बूँ । इसके पूर्व भारतीय वायु सेना में था । आपके पोस्ट पर आकर काफी खुशी हुई कि एक साथी तो मिला जो मेरा मनोबल बढाने में मदद करेगा । पोस्ट अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंक्या किसी ने देखा है,
जवाब देंहटाएंतस्वीर के पीछे?
रंगों और लकीरों की जिम्मेदारी ढोता कैनवस
आज भी कहीं अकेला है।
सच है,
कैनवास का निजी व्यक्तित्व ही कहां है ?
लीक से हटकर , कुछ नई बात है कविता में !
कुछ नक्श कुनमुनाए,
जवाब देंहटाएंकुछ रंग चहके।
कलाकार ने पहना दिया उसे सुर्ख जोड़ा
और उसके बेवा सपने सुहागन हो गए।
अब तस्वीर बन चुका था
वह खाली कैनवास।...bahut hi badhiyaa
सुंदर रचना, प्रस्तुति पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी.,
जवाब देंहटाएंwelcome to my post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
सुन्दर अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसराहनीय....बधाई....
कृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या
कभी कभी चाहतों के कारण अपना वजूद खत्म हो जाता है ..कैनवास के ज़रिये आपने सार्थक सन्देश दिया है ..
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति ..
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं ..बहुत बहुत शुक्रिया .. आपकी सुन्दर रचना पढ़ने का मुझे अवसर मिला ..बाकी रचनाएँ भी पढूंगी ..
सुंदर रचना, प्रस्तुति पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति , सशक्त लेखनी है आपकी ...और कल्पना ... लाजवाब....
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