पापा, जो गुड़िया आप
लाए थे पिछली बार
वो आज भी मैंने
रखी है बड़े जतन से
उसका ख्याल रखा मन से
पर वो बहुत पुरानी हो गई है
शन्नो की गुड़िया बिल्कुल नई है
मेरी गुड़िया के सुनहरे बाल
अब बन गए हैं जाले
ठुकरा गए हैं उसको
गुड्डे के घर वाले
उसकी सगाई जब टूटी
मैं फूट फूट कर रोई
रानो का गुड्डा तो
बड़ा ही सजीला है
टोपी ऐनक में
साहब सा लगता है
कब नई गुड़िया लाओगे
पापा तुम कब आओगे?
पप्पू की शरारतों से
हर कोई परेशान है
इतना भी वह छोटा नहीं
बस दिखने में नादान है
मां कुछ नहीं कहती है
बस खोई-खोई रहती है
जो शिकायत करो तो
उनकी आंख भर आती हैं
फिर भीगी पलकों से
जाने कैसे मुस्काती हैं
उन गीली आंखों से
बड़ा डर लगता है।
जाने क्यों उनमें
आपका चेहरा दिखता है।
मेरी शिकायतों का
उनसे जिक्र न करना
पापा, आप घर की
बिल्कुल फिक्र न करना।
आपकी गुड़िया बड़ी हो गई है
तीसरी कक्षा में अव्वल रही है
मां का, पप्पू का ख्याल रखूंगी।
मैं सब संभाल लूंगी।
आप अपना ध्यान रखना
रोज़ एक ख़त लिखना
वरना डांट बहुत खाओगे
मगर..पापा तुम कब आओगे?
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआँखें नम कर दीं आपने..
बचपन का वो गीत याद आ गया..
सात समंदर पार से..
गुड़ियों के बाजार से..
गुडिया चाहे ना लाना..
पापा जल्दी आ जाना..
बहुत प्यारी रचना...
धन्यवाद विद्या
हटाएंaankhen nam ho gain ... gudiyaa itni badee kab ho gai !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रश्िम जी। अपने ब्लॉग पर जगह देने के लिए आभार
हटाएंhttp://urvija.parikalpnaa.com/2012/01/blog-post_10.html
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंपसंद करने के लिए धन्यवाद
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कुश्वंश जी
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति बढ़िया रचना,....बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके पोस्ट आया आना सार्थक रहा,
मै समर्थक (फालोवर)बन रहा हूँ आप भी बने तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,
welcome to new post --"काव्यान्जलि"--
धन्यवाद, आपके ब्लॉग पर भी जरूर जाना होगा..
हटाएंआप अपना ध्यान रखना
जवाब देंहटाएंरोज़ एक ख़त लिखना
वरना डांट बहुत खाओगे
मगर..पापा तुम कब आओगे?
सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत सुन्दर रचना , बधाई.
थैंक्स संजय भास्कर जी
हटाएंबेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना के लिए बधाई
नववर्ष की शुभ कामनाये
धन्यवाद। आपको भी नववर्ष मुबारक हो!
हटाएंबहुत ही खूबसूरत।
जवाब देंहटाएंसादर
शुक्रिया यशवंत जी।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंपसंद करने के लिए शुक्रिया!
हटाएंकविता अच्छी लगी । ङम दोनों आज से एक डाल के पंक्षी बन गए हैं। मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंरोज एक खत लिखना
जवाब देंहटाएंवरना डांट बहुत खाओगे
मगर..पापा तुम कब आओगे?
एक संवेदनशील मन द्वारा लिखी गई संवेदनशील रचना।
अंतिम पंक्तियां मार्मिक हैं।
कविता पसंद आई, इसके लिए धन्यवाद
हटाएंमेरी शिकायतों का
जवाब देंहटाएंउनसे जिक्र न करना
पापा, आप घर की
बिल्कुल फिक्र न करना।
it is awsom mem ....i hav no words to say ...just superb n this lines touch me!!!
आपकी रचना तो भावुक कर गई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव से लिखी हुई है !
शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको !
मेरे ब्लॉग पे आपका इन्तजार रहेगा !
.एक अतिसंवेदनशील रचना जो निशब्द कर देती है
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना!
जवाब देंहटाएंitni choti gudiya or itne ache vichaar.. :)
जवाब देंहटाएंदीपिका जी को प्रणाम...नेट पर बहुत कम समय दे पाता हूँ| आपका लगातार मिलता स्नेह, अभिभूत किए रहता है| आज आपके दिये लिंक पर आने से रोक न सका खुद को और अब इस अद्भुत कविता को पढ़कर आँखें नम किए सोच रहा हूँ कि ये कविता मैंने क्यों नहीं लिखी ...इजाजत हो तो इसकी एक कॉपी अपने पास सेव करके रख लूँ?
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