समय की सिलवटों में
मेरे प्यार
की सीवन नहीं उधड़ी है
समय-समय पर
मिल कर हम ने
उसकी सिलाई पक्की की है।
फर्क बस इतना है कि
उसे जताने
या दिखाने की
छत की मुंडेर से चिल्लाने की
अब जरूरत नहीं।
न दरकार है,
पुरानी यादों की,
या पूरे-अधूरे वादों की,
अब दिखता नहीं
सिर्फ महसूस होता है
सतह पर जमा प्यार
अब गहरे पैठ गया है!
बहुत गहरी बात...प्रेम की परिपक्वता- एक अहसास...एक अनुभूति!!
जवाब देंहटाएंफर्क बस इतना है कि
जवाब देंहटाएंउसे जताने
या दिखाने की
छत की मुंडेर से चिल्लाने की
अब जरूरत नहीं।
वाकई बहुत अच्छा लिखा है आपने।
सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
धन्यवाद समीर जी और यशवंत माथुर जी।
जवाब देंहटाएंवाह...भावपूर्ण गहरी रचना...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद नीरजजी..
जवाब देंहटाएंछत की मुंडेर से चिल्लाने की
जवाब देंहटाएंअब जरूरत नहीं।
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...!