मई 13, 2020

हक़


हटा दिए हैं मैंने खिड़कियों से
गहरे रंग के पर्दे
बेरोकटोक आता है अब
मुस्कुराता हुआ सूरज
शरमाता हुआ चांद।
मुझे मंज़ूर नहीं हवाओं का तुमसे गुजरकर पहुंचना मुझ तक
मंज़ूर नहीं कि कोई तय करे मेरे हिस्से की धूप
मेरे आंगन की बारिशें
मेरी चाय की शक्कर
मेरी लिपस्टिक का कलर

नहीं देना है मुझे अब
मुस्कुराने और गुनगुनाने का हिसाब
उदासियों और खामोशियों का जवाब
ज़िन्दगी और मेरे दरमियां
अब कोई बिचौलिया न हो...

3 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं देना है मुझे अब
    मुस्कुराने और गुनगुनाने का हिसाब
    उदासियों और खामोशियों का जवाब...,
    बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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  2. वाह बहुत खूब ।
    मैंने जीना सीख लिया ...
    सुंदर सृजन।

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  3. बहुत सुन्दर रचना

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