मयकशी की बात रहने दीजिए
हमें तो अरसा हुआ तौबा किए।
होश में वो आएं जो मदहोश हों
तोहमतें मत अब लगाया कीजिए।
चांद की तन्हाई उसको ही पता
साथ उसके रतजगे जिसने किए।
फिक्र जिनको है फ़क़त रुसवाई की
ज़िक्र अब उनका भला क्या कीजिए।
जिस्म तो बस धड़कनों का खेल है
यहां हम हैं रूह का सौदा किए।
कौन सी उल्फ़त कहां की कुरबतें
बज़्म में उनकी खड़े हैं लब सिए।
हसरतें ले जाओ, रहने दो मगर
मुख़्तसर से ख्वाब जो हमने जिए।
वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंवाह ! बेहतरीन सृजन.
जवाब देंहटाएंसादर
इस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
जवाब देंहटाएंNice Blog. Keep it up.
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