हटा दिए हैं मैंने खिड़कियों से
गहरे रंग के पर्दे
बेरोकटोक आता है अब
मुस्कुराता हुआ सूरज
शरमाता हुआ चांद।
मुझे मंज़ूर नहीं हवाओं का तुमसे गुजरकर पहुंचना मुझ तक
मंज़ूर नहीं कि कोई तय करे मेरे हिस्से की धूप
मेरे आंगन की बारिशें
मेरी चाय की शक्कर
मेरी लिपस्टिक का कलर
नहीं देना है मुझे अब
मुस्कुराने और गुनगुनाने का हिसाब
उदासियों और खामोशियों का जवाब
ज़िन्दगी और मेरे दरमियां
अब कोई बिचौलिया न हो...