क्या तुम्हें याद है?
जब
बागानों में
हौले से उतरती शाम,
तुम्हें कुछ लम्हों की सलाई दे जाती थी
सपने बुनने के लिए।
नज़रों से गुम होते लाल गोले के साथ
जब आसमान पर सियाही फैलती थी
तो उतरते थे जमीन पर
कुछ अनछुए ख्वाब
और पैरों के नीचे
पत्तों की चरमराहट भी
चौंका जाती थी।
बांस के झुरमुट के पीछे वो पहाड़ी झरना
क्या आज भी बहता है?
जिसकी कल-कल
तुम्हारी खिलखिलाहट को
कुछ यूं समा लेती थी
कि दोनों को अलग करना
एक पहेली होता था।
उसके किनारे बैठ तुम देर तक
मुझे सोचा करती थी।
तुम्हें याद हैं?
वो साफ पानी में अपना अक्स देखना?
वो बनती-बिगड़ती शक्लें।
यहां तो टूटी सड़क पर जमे
बारिश के मटमैले पानी में
कुछ भी साफ नहीं दिखता।
वो हवा जो तुम्हें सहलाकर
सिहरा जाती थी।
वो चांदनी जो तुम्हें
बाहों में समेटती थी,
तो डाह होती थी,
चांद की किस्मत से।
वो उजास चांदनी की थी
या तुम्हारे मन की?
छत पर देखना
चांद और बादलों की लुकाछिपी,
वो उंगलियों से तारे गिनना।
तुम्हें याद है?
तुम्हारी आंखों की कूची
कैसे सपनों में रंग भरा करती थी।
यहां तो तितलियों के पंख भी बेरंग हो गए हैं!
चाय की पत्तियां तोड़ती मां की पीठ पर बंधा
वो नन्हा बच्चा
जो तुम्हें देखकर मुस्कुराता था।
लालबत्ती पर गाड़ी के शीशे थपथपाती
हौले से उतरती शाम,
तुम्हें कुछ लम्हों की सलाई दे जाती थी
सपने बुनने के लिए।
नज़रों से गुम होते लाल गोले के साथ
जब आसमान पर सियाही फैलती थी
तो उतरते थे जमीन पर
कुछ अनछुए ख्वाब
और पैरों के नीचे
पत्तों की चरमराहट भी
चौंका जाती थी।
बांस के झुरमुट के पीछे वो पहाड़ी झरना
क्या आज भी बहता है?
जिसकी कल-कल
तुम्हारी खिलखिलाहट को
कुछ यूं समा लेती थी
कि दोनों को अलग करना
एक पहेली होता था।
उसके किनारे बैठ तुम देर तक
मुझे सोचा करती थी।
तुम्हें याद हैं?
वो साफ पानी में अपना अक्स देखना?
वो बनती-बिगड़ती शक्लें।
यहां तो टूटी सड़क पर जमे
बारिश के मटमैले पानी में
कुछ भी साफ नहीं दिखता।
वो हवा जो तुम्हें सहलाकर
सिहरा जाती थी।
वो चांदनी जो तुम्हें
बाहों में समेटती थी,
तो डाह होती थी,
चांद की किस्मत से।
वो उजास चांदनी की थी
या तुम्हारे मन की?
छत पर देखना
चांद और बादलों की लुकाछिपी,
वो उंगलियों से तारे गिनना।
तुम्हें याद है?
तुम्हारी आंखों की कूची
कैसे सपनों में रंग भरा करती थी।
यहां तो तितलियों के पंख भी बेरंग हो गए हैं!
चाय की पत्तियां तोड़ती मां की पीठ पर बंधा
वो नन्हा बच्चा
जो तुम्हें देखकर मुस्कुराता था।
लालबत्ती पर गाड़ी के शीशे थपथपाती
औरत की गोद में बच्चे
की आंखें उससे बहुत अलग हैं।
जब कभी रात अकेली होती है,
तुम बहुत याद आती हो।
पर हमारे बीच बरसों का फासला है।
हम उतने ही अलग हैं,
जितना तुम्हारे पहाड़ी झरने से
मेरी सूखती हुई नदी।
भले हम जमीन और आसमान हों
क्या कभी कहीं दूर सपनों के क्षितिज में
हम मिल सकते हैं?
कहीं दूर,
जवाब देंहटाएंसपनों के क्षितिज में,
मिल तो सकते हैं!
KHUBSURAT LINES WITH EMOTIONS AND FEELINGS
तुम्हारी कविता खुशनुमा अहसास में लिपटी एक दर्द भरी टीस दे जाती है...और इस अहसास को शब्द देने मुश्किल हो जाते हैं...
जवाब देंहटाएंबस महसूस किया जा सकता है.
पहले तो आपकी नज़्म पढ़कर किसी शायर की ये पंक्तियां गुनगुनाने का मन कर गया --
जवाब देंहटाएंरास्ते में वो मिल गया अच्छा लगा,
सूना-सूना रास्ता अच्छा लगा।
कितने शिकवे थे मुझे थे तकदीर से,
आज क़िस्मत का लिखा अच्छा लगा।
मुझमें क्या है मुझको कब मालूम है,
उससे पूछो उसको क्या अच्छा लगा।
और अब ..
जवाब देंहटाएंइस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।
इस रचना में विनम्र सदाशयता एक अदम्भ आशावाद से भरी है। बहुत सारे मोहभंगों के बीच यह आशावाद राहत भी देता है। काव्यभाषा सहज है। इस कविता में नागर जीवन की जटिलता, आपाधापी, संग्राम और इन सबसे अलग उम्मीद और आंकाक्षाओं की अपरंपार दुनिया है।
मेरी एक टिप्पणी स्पैम में है। बाहर करें।
जवाब देंहटाएंbhav prabal bahut sundar rachna ....!!
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen ...
सुन्दर अह्साशो की अभिव्यक्ति है आपकी कविता अच्छे शब्दों का चुनाव भी बधाई
जवाब देंहटाएंचाय की पत्तियां तोड़ती मां की पीठ पर बंधा
जवाब देंहटाएंवो नन्हा बच्चा
जो तुम्हें देखकर मुस्कुराता था।
लालबत्ती पर रुकी गाड़ी के शीशे थपथपाते
इस बच्चे की आंखें उससे बहुत अलग हैं।
जब कभी रात अकेली होती है,
तुम बहुत याद आती हो।
पर हमारे बीच बरसों का फासला है।
हम उतने ही अलग हैं,
जितना तुम्हारे पहाड़ी झरने से
मेरी सूखती हुई नदी।
हम रेल की पटरियां तो नहीं
लेकिन जमीन और आसमान हो सकते हैं।
कहीं दूर,
सपनों के क्षितिज में,
मिल तो सकते हैं!.....सही कहा .आपने ....रेल की पटरियों सा होने से कहीं बेहतर है ज़मीन और आसमान होना.क्यूंकि क्षितिज पे मिला तो जा सकता है...अकम से कम .
एहसास को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है .... याद दिलाते हुये जैसे सारी ज़िंदगी का निचोड़ समा दिया है
जवाब देंहटाएंलम्हों की सलाई और सपने
जवाब देंहटाएंकई बार उधेड़ो
बुनो .... न सलाई रूकती है, न सपने ...
तुम्हें याद हैं?
जवाब देंहटाएंवो साफ पानी में अपना अक्स देखना?
वो बनती-बिगड़ती शक्लें।
यहां तो टूटी सड़क पर जमे
बारिश के मटमैले पानी में
कुछ भी साफ नहीं दिखता ...
कसक लिए ... मन के किसी कोने में यादों के दीप जलाए .... हालात से संमझौता ... मजबूरी या विवशता ... वक्त भी तो यूं ही है गुज़रता ...
मन को छूती है ये रचना ...
kya likhoon ...kho gayi hoon aapki panktiyon me
जवाब देंहटाएंshabdo me bhavo ka sundar chitran
जवाब देंहटाएंबांस के झुरमुट के पीछे वो पहाड़ी झरना
जवाब देंहटाएंक्या आज भी बहता है?
जिसकी कल-कल
तुम्हारी खिलखिलाहट को
कुछ यूं समा लेती थी
कि दोनों को अलग करना
एक पहेली होता था।
उसके किनारे बैठ तुम देर तक
मुझे सोचा करती थी
.....
दीपिका जी मैं एकदम तरोताजा रचना और भाव भी ...भला कवितायेँ भी कभी पुरानी पड़ती हैं क्या ...वो तो कालातीत होती हैं !
बहुत ही उम्दा कविता हमेशा की ही तरह |जब बागानों -की जगह चाय बागानों मुझे अच्छा लग रहा है |आभार
जवाब देंहटाएंखूबसूरत से अहसास ... हमेशा ताजा ही रहते हैं
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर
आपने याद दिलाया तो हमें याद आया.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दीपिका जी....
अनु
वाह, बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंचाय बागानों की खूबसूरत दुनिया से महानगरीय परिवेश में आकर व्यक्ति निश्चल प्रकृति व लोगों से जिस तरह का कटाव महसूस करता है वो इस कविता में सहज ही नज़र आता है। पुराना शहर और उससे जुड़ी यादें दिल में एक बार डेरा जमा लें तो फिर वही उनका स्थायी वास हो जाता है।
जवाब देंहटाएंयादों के मोती यूँ चुन चुनकर कागज पर उकेरना कि उनको पढ़ते वक्त नजरें चौधिया जायें, दिल में गुदगुदी सी हो और मन प्रसन्नता से खिल उठे... सहज नहीं है। कविता अंत में एक सार्थक संदेश देने में भी सफल हुई है।
जवाब देंहटाएं..री पोस्ट के लिए आभार।
Dipika ji, is sundar aur saarthak rachne ke liya badhayi swikaren.
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
............
ये खूबसूरत लम्हे...
दीपिका, बहुत सुन्दर कविता है.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
हम रेल की पटरियां तो नहीं
जवाब देंहटाएंलेकिन जमीन और आसमान हो सकते हैं।
कहीं दूर,
सपनों के क्षितिज में,
मिल तो सकते हैं!
बहुत ही उत्कृष्ट भाव । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
अच्छा किया दुबारा पोस्ट की यह कविता ..फिर से पढ़ने को मिल गई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत है.
बहुत खूब .....
जवाब देंहटाएंप्रकृति का सुन्दर वर्णन ...
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
बहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएं