बहुत मामूली है मेरी कहानी।
इसके पात्र काल्पनिक नहीं,
किसी वास्तविक व्यक्ति या वस्तु से समानता
संयोग नहीं है।
मेरी कहानी में परियां नहीं हैं,
महल या राजकुमारी नहीं है।
किसी शायर का रूमानी ख्याल,
या प्रथम प्रेम का कोमल एहसास नहीं है।
मैं इस कहानी की पात्र
हजारों मील दूर गांव से
जीने की तलब लेकर
शहर आई हूं।
मेरी कहानी लिखी है,
ज़िन्दगी के खुरदरे सफहों पर
रात की रोशनाई से।
मगर यकीन है मुझे कि एक दिन
सूरज की कलम से भी
कुछ लफ्ज लिखे जाएंगे।
एक पूरी रात के बाद
सहर के भी किस्से आएंगे।
मेरा गांव
नीले पहाड़ों के देश में है।
उतरते झरनों से
बस एक फलांग भर है
मेरा कच्चा मकान।
जहां मेरी मां
मेरा इंतजार नहीं करती।
उसकी धुंधलाई आंखें
दूर से उड़ती गर्द देख लेती हैं।
उसके कानों में
मंदिर के घंटे सी बजती है
डाकिये की साइकिल की घंटी
और कागज के चंद टुकड़े
उसकी रातों की सियाही में
एक चम्मच रोशनी घोल देते हैं।
मेरे हाथों की लकीरें
रोज घिसती हैं बरतनों के साथ।
मेरी आंखों के काले घेरे
रात भर जगे
मेरे सपनों की कालिख है।
सपने जो जिंदा है मेरी तरह..
मेरी थकी आंखों में
अब भी दिखते हैं नीले पहाड़।
जीभ से उतरा नहीं है
चुराए हुए हरे मटर का स्वाद।
मेरी सांसों में ताजा है अभी
आजाद हवा की खुश्बू।
इनमें नहीं बसी है अब तक
जूठे बरतनों की बास।
एक दिन कमाए हुए सपने लेकर
मैं फिर लौटूंगी उन्हीं झरनों के पास।
उस कच्चे घर की चौखट पर
कभी तो मेरा इंतजार होगा।
लाड़ से अपने आंचल से
मेरा चेहरा पोंछेगी मां।
उसकी गोद में सर रखकर
उसकी छलकती आंखों से
मैं एक नया सपना देखूंगी
मैं एक बड़ा सपना देखूंगी....
मेरी इस कहानी को
कोई भी नाम दे दो
अधूरी कहानियों का कोई शीर्षक नहीं होता...
खूबसूरत एहसास से भरी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमेरी इस कहानी को
जवाब देंहटाएंकोई भी नाम दे दो...
सुन्दर रचना,बेहतरीन एहसासों की भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
एक दिन कमाए हुए सपने लेकर
जवाब देंहटाएंमैं फिर लौटूंगी उन्हीं झरनों के पास।
उस कच्चे घर की चौखट पर
कभी तो मेरा इंतजार होगा।
बहुत सुन्दर व भावपूर्ण रचना।
koi kahaanee adhooree nahee hotee
जवाब देंहटाएंadhooraa pan hee uskaa ant hotaa hai
sukhad baat hai
kahaanee ko jaise chaahe mod sakte hein
aapkee kahaanee bhee achhee sadak kee taraf mudegee zaroor...
मेरी कहानी लिखी है,
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी के खुरदरे सफहों पर
रात की रोशनाई से।
मगर यकीन है मुझे कि एक दिन
सूरज की कलम से भी
कुछ लफ्ज लिखे जाएंगे।.... ज़रूर लिखी जाएगी और फिर शीर्षक उसके मोहताज होंगे
बेहतरीन , शानदार.....हैट्स ऑफ इसके लिए।
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो नाम उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है, कहानी पूरी ही क्यों न हो। फ़र्क़ पड़ता है सपना देखने न देखने से। जो देखते हैं, सपने उन्हीं के पूरे होते हैं।
जवाब देंहटाएंवाह! जज़्बातों का बेहतरीन रूप इस अधूरी कहानी के जरिये!
जवाब देंहटाएंयह अपना गांव-घर छोड़कर शहर में घरों में नौकरानी का काम करने आने वाली लड़कियों की व्यथा है... वे न तो अपना बचपन जी पाती हैं और न अपने सपने.. पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों से सैंकड़ों लड़कियां रोजाना बड़े शहरों में भेजी जाती हैं, उनके गरीब माता-पिता के सामने चंद रुपयों का प्रलोभन देकर। मगर शायद ही सभी लड़कियां अपना सम्मान और गरिमा बनाए रखकर काम कर पाती हैं, कच्ची उम्र में अपने माता-पिता के स्नेह से महरूम इन लड़कियों को नए घर में भी सदस्य की तरह नहीं अपनाया जाता.. हैरत है कि अपने बच्चों पर जान न्यौच्छावर करने वाले लोग इनका दर्द नहीं समझ पाते..
जवाब देंहटाएंएक खूबसूरत कविता |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंव्यथा का सही चित्रण करने वाली मार्मिक कविता । ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं-एक दिन कमाए हुए सपने लेकर
जवाब देंहटाएंमैं फिर लौटूंगी उन्हीं झरनों के पास।
उस कच्चे घर की चौखट पर
कभी तो मेरा इंतजार होगा।
लाड़ से अपने आंचल से
मेरा चेहरा पोंछेगी मां।
एक दिन कमाए हुए सपने लेकर
जवाब देंहटाएंमैं फिर लौटूंगी उन्हीं झरनों के पास।
उस कच्चे घर की चौखट पर
कभी तो मेरा इंतजार होगा।
THERE IS NO COMFORT IN THE PAIN
SUPERB LINES ON LIFE AND DREAM.
अपनी बात कहने का एक बहुत खूबसूरत अंदाज़ है आपके पास। कविता बहुत मार्मिक और पुरअसर लगी, उनकी कहानी जो शायद दर्द को अपनी पीठ पर लादे मीलों का सफर करते हैं। इन्हीं में कहीं हमारा दर्द भी घुला-मिला है। कविता का एक-एक लफ्ज़ मुझे बोलता हुआ सा, तस्वीर बनाता हुआ सा लगा। आज शायद बहुत देर तक मैं इसके असर में रहूँ ...।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंएक दिन कमाए हुए सपने लेकर
जवाब देंहटाएंमैं फिर लौटूंगी उन्हीं झरनों के पास।
उस कच्चे घर की चौखट पर
कभी तो मेरा इंतजार होगा।
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
मेरी इस कहानी को
जवाब देंहटाएंकोई भी नाम दे दो
अधूरी कहानियों का कोई शीर्षक नहीं होता........काश मिल जाये इन कहानियों को कोई खूबसूरत नाम !
मेरी इस कहानी को
जवाब देंहटाएंकोई भी नाम दे दो
अधूरी कहानियों का कोई शीर्षक नहीं होता
प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
अति सुन्दर , कृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....
जवाब देंहटाएंएक दिन कमाए हुए सपने लेकर
जवाब देंहटाएंमैं फिर लौटूंगी उन्हीं झरनों के पास।
उस कच्चे घर की चौखट पर
कभी तो मेरा इंतजार होगा।
लाड़ से अपने आंचल से
मेरा चेहरा पोंछेगी मां।
बेहद भावपूर्ण, बधाई.
मेरी इस कहानी को
जवाब देंहटाएंकोई भी नाम दे दो
अधूरी कहानियों का कोई शीर्षक नहीं होता...
भावपूर्ण उत्कृष्ट प्रस्तुति,शुभकामनाएं
कृपया अवलोकन करे ,मेरी नई पोस्ट ''अरे तू भी बोल्ड हो गई,और मै भी''
बहुत अच्छी कविता दीपिका जी |मेरी अपनी कविताओं का ब्लॉग www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
जवाब देंहटाएंमेरी सांसों में ताजा है अभी
जवाब देंहटाएंआजाद हवा की खुश्बू।
इनमें नहीं बसी है अब तक
जूठे बरतनों की बास।
बहुत ही कुशलता से उनके मन के तह तक पहुँच कर उनके भावों को शब्द दिए हैं
{पता नहीं कैसे छूट गयी थी..ये कविता पढ़ने से :(}
एक दिन कमाए हुए सपने लेकर
जवाब देंहटाएंमैं फिर लौटूंगी उन्हीं झरनों के पास।
उस कच्चे घर की चौखट पर
कभी तो मेरा इंतजार होगा।
लाड़ से अपने आंचल से
मेरा चेहरा पोंछेगी मां।
गहन भाव संयोजन है इस अभिव्यक्ति में ...उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई
मैं आपसे जिस सरोकार की बात कर रहा था, वो यही है दीपिका जी... इसमें भी रोशनी, पहाड़, झरने, सियाही की बात है.. लेकिन ये नर्म शब्द कोरी रूमानियत का हिस्सा नहीं हैं, ये कोरी कल्पना को विस्तार नहीं देते, बल्कि एक कठोर सच को मार्मिक तरीके से पेश करने के उपकरण हैं।
जवाब देंहटाएंभीतर तक छू गई यह रचना... बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त किया है हर बात को... इसकी ख़ासियत यह है कि इसकी हर पंक्ति एक तस्वीर बनाती है ज़हन में.... लिखते रहिए!!!!!
सपनो की गडहरी से बिखरे कुछ फूल
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना दीपिका | मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया | बहुत बहतु बधाई |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
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