सूरज सी दहकती हैं
मेरी धड़कनें
चांदनी में निचोड़कर
माथे पर रखो
ठंडी रात...
गर्म सांसों को
आराम आ जाए।
सरकने दो रात को
आहिस्ता आहिस्ता
चांद आता रहे खिड़की से
थोड़ा थोड़ा
बंद किवाड़ों से भी
आ ही जाएगा सूरज
बांट लेते हैं तब तक
आधी आधी रात
आधा आधा चांद
सुबह हिसाब कर लेंगे।
रात के होठों पर चुप सी लगी है
आंखें बोझिल हैं चांद की
आज की रात
बोलनें दें खामोशियों को
अपने अपने हिस्से के आसमान में
कोई टूटता तारा ढूंढें
कोई रूठी हुई मन्नत
शायद पूरी हो जाए।
बिखरने की आदत है,
यूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तक
समूचा रहे जिस्म,
साबुत हो रूह
रतजगे बहुत हुए
आज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।
सरकने दो रात को
जवाब देंहटाएंआहिस्ता आहिस्ता
चांद आता रहे खिड़की से
थोड़ा थोड़ा
बंद किवाड़ों से भी
आ ही जाएगा सूरज
बांट लेते हैं तब तक
आधी आधी रात
आधा आधा चांद
सुबह हिसाब कर लेंगे।... अरे वाह
बिखरने की आदत है,
जवाब देंहटाएंयूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तक
समूचा रहे जिस्म,
साबुत हो रूह
रतजगे बहुत हुए
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,......
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
सुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंचांद आता रहे खिड़की से
जवाब देंहटाएंथोड़ा थोड़ा
बंद किवाड़ों से भी
आ ही जाएगा सूरज
बांट लेते हैं तब तक
आधी आधी रात
आधा आधा चांद
सुबह हिसाब कर लेंगे।
खूबसूरत एहसास ...
रतजगे बहुत हुए
आज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।
बहुत सुंदर भाव ... मैं तो गीले ख्वाबों की कल्पना कर रही हूँ .... क्यों कि दोस्त रोया तो ज़रूर होगा ...
.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता लिखी है आपने.
बधाई !
.
जवाब देंहटाएं♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
बहुत सुन्दर एहसास...एकदम रूह से निकलती कविता !
जवाब देंहटाएं...पाँच स्टार !
dil se nikli dil tak pahunchi
हटाएंबिखरने की आदत है,
जवाब देंहटाएंयूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तक
समूचा रहे जिस्म,
साबुत हो रूह
रतजगे बहुत हुए
आज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।
बेहतरीन ...
रूहानी कविता . आभार .
जवाब देंहटाएंआपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएं----------------------------
कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
गहन अभिव्यक्ति....सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंbahut sunder ghan rachnaa
जवाब देंहटाएंबांट लेते हैं तब तक
जवाब देंहटाएंआधी आधी रात
आधा आधा चांद
सुबह हिसाब कर लेंगे।...
बहुत सुन्दर ख़याल, धन्यवाद!
सादर
Awesomely beautiful!!
जवाब देंहटाएंdo-teen baar padha is kavita ko...Just awesome :) :)
बिखरने की आदत है,
जवाब देंहटाएंयूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तकwaah gazab ke expression....
खुबसूरत नज़्म... सुन्दर प्रयोग...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
बहुत बहुत सुन्दर..........
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति ख्वाब की एक सीढ़ी सी लगी...चढ़ते चढ़ते चाँद तक पहुँच गयी मैं भी....
लाजवाब दीपिका.
बहुत ही खूबसूरत रचना !
जवाब देंहटाएंअपने अपने हिस्से के आसमान में
कोई टूटता तारा ढूंढें
कोई रूठी हुई मन्नत
शायद पूरी हो जाए।
मन मुग्ध हो गया ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
बहुत सुन्दर मनमोहित करती रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
सूरज सी दहकती हैं
जवाब देंहटाएंमेरी धड़कनें
चांदनी में निचोड़कर
माथे पर रखो
ठंडी रात...
गर्म सांसों को
आराम आ जाए।....सच! विचार मात्र से ही एक ठंडक छू गयी भीतर तक .....सुन्दर अभिव्यक्ति !!!
bahut sundar
जवाब देंहटाएं"सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
जवाब देंहटाएंख्वाब गीले हो जाएंगे"
वाह ! ! अति सुन्दर .
"सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
जवाब देंहटाएंख्वाब गीले हो जाएंगे"...
बहुत सुंदर और गहरे भाव ... !!
बेहद गहरे अहसास लिए ख़ूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंकमाल की अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंआपके लफ़्ज़ रूह तक उतर कर अपनी बात कहते हैं। अनुभूति की गहराई देखते ही बनती है। भाषा इतनी प्रभावोत्पादक कि देर तक शब्द अपना असर क़ायम रखते हैं। कविता खत्म होने के बाद भी। आपकी भाषा में चित्रात्मकता है लगता है कि कलम नहीं तूलिका चल रही है काग़ज़ पर और चित्र बनते जा रहे हों। बधाई इतनी पुरअसर रचना के लिए।
जवाब देंहटाएंचांदनी में निचोड़कर
जवाब देंहटाएंमाथे पर रखो
ठंडी रात...
गर्म सांसों को
आराम आ जाए।
बहुत खूबसूरत शब्द
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।.
जवाब देंहटाएंरतजगे बहुत हुए
जवाब देंहटाएंआज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।
शब्दों और भावों की बढि़या कारीगरी।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती आप के ब्लॉग पे आने के बाद असा लग रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर अब मैं नियमित आता रहूँगा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद:
http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
बहुत खूब ... गहरे एहसास जैसे रचना में उतार दिए हैं ...
जवाब देंहटाएंपूरी रचना में रात के अलग अलग भाव हैं. जैसे छोटी छोटी क्षणिकाएं रात को अपने अपने हिस्से की रौशनी दे रही हो और चाँद से चांदनी ले रही हो. बहुत सुन्दर भाव...
जवाब देंहटाएंबिखरने की आदत है,
यूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तक
समूचा रहे जिस्म,
साबुत हो रूह
रतजगे बहुत हुए
आज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।
बिखरने की आदत है,
जवाब देंहटाएंयूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तक
समूचा रहे जिस्म,
साबुत हो रूह
रतजगे बहुत हुए
आज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।
touching lines with feelings and emotions.
सरकने दो रात को
जवाब देंहटाएंआहिस्ता आहिस्ता
चांद आता रहे खिड़की से
थोड़ा थोड़ा......
खूबसूरत कृति....मन मोहित हो गया... आज अचानक बाग बगीचे की शोभा निरखते इधर आ गई...और श्रम भूल गई
सादर
यशोदा
बहुत ही अच्छी रचना पढने को मिली --------धन्यवाद
जवाब देंहटाएंख्वाब गीले हो जाएंगे।
जवाब देंहटाएंwah.....kya mulayamiyat hai.....
बांट लेते हैं तब तक
जवाब देंहटाएंआधी आधी रात
आधा आधा चांद
सुबह हिसाब कर लेंगे।
बहुत सुन्दर ख्याल ..बांटने के लिए आभार.
बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST...काव्यान्जलि... तुम्हारा चेहरा.
सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंरतजगे बहुत हुए
जवाब देंहटाएंआज सोने का मन है
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ...
बाप रे....क्या बात है....नाम हो गया बिलकुल मैं तो....!!!
जवाब देंहटाएंअरे ये तो गलती ही हो गयी....नम कहना था ना मुझे...
जवाब देंहटाएंआप्शन देखे ही नहीं....स्पेस दबा दिया...
सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.
हटाएंबिखरने की आदत है,
जवाब देंहटाएंयूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तक
समूचा रहे जिस्म,
साबुत हो रूह
रतजगे बहुत हुए
आज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।..
दीपिका जी जय श्री राधे -खूबसूरत मन को छू लेने वाले भाव .अनूठी रचना ...बधाई हो
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
बहुत सुन्दर लिखा अपे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा आपने !
जवाब देंहटाएंचाँद सी खूबसूरत नज़्म......
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंhttp://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/03/blog-post_12.html
बेहद ख़ूबसूरत गहन भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंशुभ कामनाएं !!!
रतजगे बहुत हुए
जवाब देंहटाएंआज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।
नायाब बिम्ब सृजन .. लाजवाब