अलसाया सा दिन पड़ा था,
बादलों की रजाई ओढ़कर।
हांफ रही थी धूप
किसी बूढ़ी भिखारन सी।
हां, वो सर्दियां ही थीं शायद
जब हम मिले थे पहली बार,
मुझे याद है वो कंपकंपाना...
और पूरे बदन का सिहरना।
या वह वसंत था!
क्या तुमने भी सुनी थी,
कलियों के चटकने की आवाज़?
हवाओं की महक,
जब सांसों में भर आई थी।
कहीं पास बुलबुल भी चहकी थी।
या वह था तुम्हारा फेवरिट
बारिशों का मौसम,
जब गीले जज्बातों को
टांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,
मेरी आंखों का खारा पानी
तुम्हारे होठों पर भी था।
वो दिन गर्मियों के तो नहीं थे?
याद है, कितनी तेज़ थी प्यास।
पसीजती हथेलियों में
चंद वादे रखे थे तुमने।
वह पहला तोहफा
अब तक बंद है मेरी मुट्ठी में।
जिस लम्हा तुमने
सारे मौसम मेरे नाम किए थे,
तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
उसी एक पल में,
और बस कह दिया है
स्टैच्यू!
बहुत ही खूबसूरत कविता दीपिका जी |होली की रंग बिरंगी शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंजिस लम्हा तुमने
जवाब देंहटाएंसारे मौसम मेरे नाम किए थे,
तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
उसी एक पल में,
और बस कह दिया है
स्टैच्यू!
वाह - स्टैच्यू!
उम्दा कविता |होली की शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंथमा रहे वो पल....
कभी कोई over ना कहे...
सुंदर अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन रचना,..
जवाब देंहटाएंNEW POST...फिर से आई होली...
bahut hi umda!
जवाब देंहटाएंजब गीले जज्बातों को
जवाब देंहटाएंटांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,
बेहद ख़ूबसूरत कविता....बरबस वाह निकल पड़ा मुख से
प्रेम के रंग में सारे मौसम रंग दिए..वाह !
जवाब देंहटाएंजिस लम्हा तुमने
जवाब देंहटाएंसारे मौसम मेरे नाम किए थे,
तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
उसी एक पल में,
और बस कह दिया है
स्टैच्यू!
मौसम अर्पित करने के बदले किसी को कैद कर स्टैच्यू बना देना...
वाह, कितने खूबसूरत भाव और कितने सुंदर शब्द !
Bahut achchii baat ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
हटाएंबेहतरीन कविता है। कल ही रश्मि जी ने फेसबुक पर टैग करके पढवाया था, आज फिर पढ़ रहा हूं। अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंमैंने तो कल ही पढ़ लिया था ये कविता और यकीन मानिए इस लाईने ने तो कत्ल कर दिया बिलकुल -
जवाब देंहटाएं"या वह था तुम्हारा फेवरिट
बारिशों का मौसम,
जब गीले जज्बातों को
टांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,
मेरी आंखों का खारा पानी
तुम्हारे होठों पर भी था।"
:)
और वो आखिर वाला स्टैच्यू!!! कमाल :)
स्मृति का वह लम्हा प्रतिमा बनकर स्थिर रह गया ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव !
सुन्दर भाव एवं रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है आपकी...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लगी..
बहुत ही प्यारी रचना है दीपिका,बधाई आप को
जवाब देंहटाएंवो दिन गर्मियों के तो नहीं थे?
जवाब देंहटाएंयाद है, कितनी तेज़ थी प्यास।
पसीजती हथेलियों में
चंद वादे रखे थे तुमने।
वह पहला तोहफा
अब तक बंद है मेरी मुट्ठी में।
बहुत सुंदर रचना !!!
बहुत ही प्यारी रचना है सुन्दर भाव,दीपिका,बधाई
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar bhavabhivyakti hai aapki...holi ki shubhkamnayen...
जवाब देंहटाएंसचमुच खूबसूरत पलों को हम ‘स्टैच्यू’ करना चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति और अद्भुत कथन भंगिमा है।बधाई आपको ।
जिस लम्हा तुमने
जवाब देंहटाएंसारे मौसम मेरे नाम किए थे,
तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
उसी एक पल में,
और बस कह दिया है
स्टैच्यू!
अति सुन्दर भाव बोध की रचना .एक शब्द चित्र भाव का बुनती सी .
या वह था तुम्हारा फेवरिट
जवाब देंहटाएंबारिशों का मौसम,
जब गीले जज्बातों को
टांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,
मेरी आंखों का खारा पानी
तुम्हारे होठों पर भी था।
...
प्रेम ऐसे ही किसी पागलपन का नाम है !!!
ठंडी में गीली धुप
जवाब देंहटाएंएक दशक के बाद इस कविता की रूमानियत बढ़ गई है।
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