जब बिछड़े थे पुरानी राहों से
तेरे कांधे पे ही
सर रख के रोए थे।
ऐ शहर
तेरा इतना एहसान तो है हम पर।
मगर सर्द रातों में अक्सर
घूरे में जलते पुआल
की नर्म आंच याद आती है
तो तेरे हीटर की गरमी
बस रह जाती है
बदन के आस-पास
और रूह ठंडी रह जाती है।
हां तेरी रातें अंधेरी नहीं होतीं
तभी तो तारों को भी
शर्म आती है यहां।
मगर नाजुक सी बाती में भीगी रात का नशा
पुरानी शराब सा चढ़ता है,
तेरी रोशन रातों को क्या पता !
अब तो तेरी धड़कनों में
मेरी सांसें यूं घुली हैं।
कि मेरी लकीरें,
तेरी हथेलियों में बनी हैं।
मगर पुरानी हवाओं की खुश्बू पर
मेरा कोई अख्तियार नहीं।
ये तुझसे जो आशनाई है
दरअसल उसी ने सिखाई है।
तेरी रवायतों से,
कोई शिकवा नहीं है मुझको।
मगर जिस दिन पुरानी यादें
मेरे ख्वाबों का बोझ उठाने
का मेहनताना मांगेंगी।
कच्ची पगडंडियां मेरे कदमों के
असली निशान ढूंढेंगी।
जिस दिन आईना
मेरे नकाब के पीछे
एक चेहरा खोजेगा।
जब एक रूठा गांव
मुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
मुझे हिसाब देने के लिए।
बहुत खूबसूरती से लिखा है ....
जवाब देंहटाएंसबको आखिर एक दिन हिसाब देना होगा.....!
जवाब देंहटाएं...पर प्यार हिसाब-किताब पाने के लिए नहीं होता !
जब एक रूठा गांव
जवाब देंहटाएंमुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
मुझे हिसाब देने के लिए।
अर्थपूर्ण , छूट कर भी कुछ नहीं छूटता ......
कच्ची पगडंडियां मेरे कदमों के
जवाब देंहटाएंअसली निशान ढूंढेंगी।
जिस दिन आईना
मेरे नकाब के पीछे
एक चेहरा खोजेगा।
जब एक रूठा गांव
मुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
अच्छी पंक्तियाँ \,बढ़िया प्रस्तुति,....
बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी कविता ....
जवाब देंहटाएंशब्द ध्यान बांधते हैं ....अच्छा लिखती हैं आप ....
सार्थक लेखन ....
अब तो तेरी धड़कनों में
जवाब देंहटाएंमेरी सांसें यूं घुली हैं।
कि मेरी लकीरें,
तेरी हथेलियों में बनी हैं... is rishte ko kaise bhulega shahar
बेहद खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंगहरे और सुन्दर शब्द...इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
खूबसूरत सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपको पढकर.
आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
बेहतरीन व सार्थक रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ..
आपको पढ़ना अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंजिस दिन आईना
जवाब देंहटाएंमेरे नकाब के पीछे
एक चेहरा खोजेगा।
जब एक रूठा गांव
मुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
मुझे हिसाब देने के लिए।
बहुत अच्छी कविता।
Totally Awesome..
जवाब देंहटाएंBehtreen Kavita lagi mujhe!! :)
तेरी रवायतों से,
जवाब देंहटाएंकोई शिकवा नहीं है मुझको।
मगर जिस दिन पुरानी रातें
मेरे ख्वाबों का बोझ उठाने
का मेहनताना मांगेंगी।
कच्ची पगडंडियां मेरे कदमों के
असली निशान ढूंढेंगी।
जिस दिन आईना
मेरे नकाब के पीछे
एक चेहरा खोजेगा।
जब एक रूठा गांव
मुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
मुझे हिसाब देने के लिए।
sunder bhav
rachana
just awesome :)
जवाब देंहटाएंजब एक रूठा गांव
जवाब देंहटाएंमुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
मुझे हिसाब देने के लिए।
बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
भाव पूर्ण रचना है .. गहरे अर्थ लिए ..
जवाब देंहटाएंजब एक रूठा गांव
जवाब देंहटाएंमुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
मुझे हिसाब देने के लिए।
क्या बात कही है...बहुत बढ़िया कविता
गहरे अर्थ लिए ,बहुत सुंदर कविता....
जवाब देंहटाएं"अब तो तेरी धड़कनों में
जवाब देंहटाएंमेरी सांसें यूं घुली हैं।
कि मेरी लकीरें,
तेरी हथेलियों में बनी हैं"
हम्म्म बेहतरीन ...
पहली बार यहाँ आया हूँ। अगर मदन (राँची) ने नहीं बतालाया होता तो मुझे पता ही नहीं चलता। पूरी पोस्टस तो नहीं देख पाया पर जितना पढ़ा अच्छा पाया !
बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंBahut Khubsurat,behtreen Prastuti
जवाब देंहटाएंबेहिसाब दर्द को समेटे है यह गीत हिसाब।
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