जाने कैसी ख़ता हुई
जिसकी हमको सज़ा हुई।
ज़ुर्म ज़रा जो पूछा तो
दुनिया हमसे ख़फा हुई।
हमने कब खुशियां मांगी
दर्द हमारी दवा हुई।
उन्हें मिली उजली रातें
हमें शबे-ग़म अता हुई।
जान गई दीवानों की
माशूकों की अदा हुई।
फूलों की आंखें रोईं
सीली सीली हवा हुई।
बंदों की फिर क्या हस्ती
जब उस रब की रज़ा हुई।