नए मौसम में एक पुरानी पेशकश:
कभी फुर्सत में बैठो
तो खोलना बरसों से बंद पड़ा वह कमरा
जहां यूं ही बेतरतीब बिखरा हैं
कुछ पुराना सामान।
किसी आले पर पड़ा होगा
एक पुराना अल्बम
मन करे तो देखना
कि मेरी उजली हंसी में घुलकर
तुम्हारी सुरमई शाम
कैसे गुलाबी हो जाती थी।
कि पस-ए-मंज़र में वो आसमानी रंग
मेरी उमंगों का था।
एक ही फ्रेम में कैद होंगी
तुम्हारी खामोशियां, मेरी गुस्ताखियां
और क्लोज-अप में होंगे
हमारे साझे सपने।
कैद होंगे कहीं सावन के
किस्से
जब बारिशों के बाद की धूप
में
तुमने समझाया था मुझे
इंद्रधनुष का मतलब।
अलगनी पर टंगा होगा एक पुराना कोट
जिसकी आस्तीन से चिपके होंगे कुछ ख्वाब
और एक जेब में पड़े होंगे कुछ खुदरा लम्हे
देखना क्या उनकी खनक आज भी वैसी ही है।
एक जेब में शायद पड़ी मिले
मेरी हथेलियों की गरमाहट
जो चुराई थी मैंने तुम्हारे ही हाथों से
और एक मासूम से जुर्म की सजा में
उम्र कैद पाई थी।
पन्ना दर पन्ना खोलना
माज़ी की हसीन किताब
कि सलवटों में पड़े सूखे फूलों में
महक अभी बाकी होगी।
हवाओं ने जिसे इधर धकेला था,
वह आवारा बादल का टुकड़ा
लौट कर नहीं गया।
जब नए मौसम की सर्द हवा
खुश्क कर दे तुम्हारे ज़ज्बात
चुपके से खोलना यह बंद कमरा
कि पिछले मौसमों से बचा-बचा कर
थोड़े एहसास रखे हैं तुम्हारे लिए।
अलमारी के निचले खाने में
होगा एक पीला दुपट्टा।
जब सुनाई दे तुम्हें,
वसंत के जाते हुए कदमों की उदास आहट
आहिस्ते से खोलना वह दुपट्टा
कि उसकी हर तह में
जाने कितने वसंत कैद हैं।
रफ्ता रफ्ता खुलती हर तह के साथ
तुम देखोगे सुर्ख गुलमोहर में लिपटे
सकुचाए वसंत के लौटते निशां
जैसे गौने में
किसी नवेली के महावर लगे पांव
करते हैं गृहप्रवेश।
यहां से पिछली दीवाली
मैंने बुहार दिया था दर्द का हर तिनका।
उतार दिए थे सब जाले।
और यूं ही पड़ा रहने दिया था
सारा साजो-सामान।
तन्हा नहीं होने देगा तुम्हें
मेरे जाने के बाद,
बंद कमरे का यह पुराना सामान....
तन्हा नहीं होने देगा तुम्हें
जवाब देंहटाएंमेरे जाने के बाद,
बंद कमरे का यह पुराना सामान....
बहुत सुंदर और भाव प्रबल अभिव्यक्ति ....
पहले कहीं पढ़ी हुई लगती है.....कहां पढ़ी होगी?
जवाब देंहटाएंअगर मेरा ब्लॉग आपने पहले पढ़ा हो, तो यह कविता मैंने पिछले साल पोस्ट की थी..
हटाएंबिलकुल आपका ही ब्लॉग पढ़ा था। लेकिन लम्बे अन्तराल के बाद ब्लॉग पर आपके अवतरण के कारण दिमाग में इस कविता के सृजनकर्ता का आभास संकुचित हो गया था। क्षमाप्रार्थी हूँ।
हटाएंयहां से पिछली दीवाली
जवाब देंहटाएंमैंने बुहार दिया था दर्द का हर तिनका।
उतार दिए थे सब जाले।
और यूं ही पड़ा रहने दिया था
सारा साजो-सामान।
तन्हा नहीं होने देगा तुम्हें
मेरे जाने के बाद,
बंद कमरे का यह पुराना सामान....
यादों का कमर साफ़ कर भुला पाना कहाँ सम्भव?
खुबसूरत भावों की लडियां
सामान याद दिलाता है, किसी के होने की..
जवाब देंहटाएंपुराना सामान कितनी सारी स्मृतियों को समेटे रहता है ... बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंपन्ना दर पन्ना खोलना
माज़ी की हसीन किताब
कि सलवटों में पड़े सूखे फूलों में
महक अभी बाकी होगी।
हवाओं ने जिसे इधर धकेला था,
वह आवारा बादल का टुकड़ा
लौट कर नहीं गया।
जब नए मौसम की सर्द हवा
खुश्क कर दे तुम्हारे ज़ज्बात
चुपके से खोलना यह बंद कमरा
कि पिछले मौसमों से बचा-बचा कर
थोड़े एहसास रखे हैं तुम्हारे लिए।
बहुत ही खुबसूरत कविता |
एक ही फ्रेम में कैद होंगी
जवाब देंहटाएंतुम्हारी खामोशियां, मेरी गुस्ताखियां
और क्लोज-अप में होंगे हमारे साझे सपने।
आंखों में नमी ला देती हुई पंक्तियां ........
मन भर गया, भारी हो गया, भींग गया ... ऐसी नज़्में ब्लॉग जगत में मिलती कहां हैं ... शायद पहली बार ही पढ़ी है। गुलज़ार साहब याद आते रहे जब तक इसे पढ़ता रहा ... भाषा का जो सजग और ताजगी भरा प्रयोग आपने किया है, साथ ही जिन अछूते उपमानों और रूपकों के सहारे नए-नए बिंबों की पारदर्शी सृष्टि की है ... उसने मानवीय संवेदना की गुनगुनी गरमाहट के साथ साथ एक नमी भी देती चली गई है यह नज़्म ... कई दिनों तक कुछ और पढ़ने का मन न हो शायद ... इस नज़्म की सरिता के बीच से गुज़रना एक बेहद आत्मीय अनुभव की प्रतीति करा गया।
जवाब देंहटाएंबधाई ... बधाई ... बधाई ... बधाई ...!!!!
एक जेब में शायद पड़ी मिले
जवाब देंहटाएंमेरी हथेलियों की गरमाहट
जो चुराई थी मैंने तुम्हारे ही हाथों से
और एक मासूम से जुर्म की सजा में
उम्र कैद पाई थी।.....bahut hi pyari komal bhavnayen...chu liya man ko apki kavita ne...:)
दीपिका जी,
जवाब देंहटाएंहम सबके भीतर कहीं होता है,एक बंद कमरा,स्मृतियों से भरा,
संवेदना से भरी बेहतरीन रचना
".एक जेब में शायद पड़ी मिले
मेरी हथेलियों की गरमाहट
जो चुराई थी मैंने तुम्हारे ही हाथों से
और एक मासूम से जुर्म की सजा में
उम्र कैद पाई थी।"
शुभकामनाये
उसकी हर तह में
जवाब देंहटाएंजाने कितने वसंत कैद हैं ... आँखों के पन्नों पर बना अल्बम घर के कोने कोने से सजा होता है .... चेहरे,बातें ... जाने क्या क्या, कितना कुछ !
सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंतन्हा नहीं होने देगा तुम्हें
जवाब देंहटाएंमेरे जाने के बाद,
बंद कमरे का यह पुराना सामान....
बहुत खूब।
यूँ ही पढवाती रहो, चुनी हुई कवितायें।
तुम्हारी कवितायें बार बार पढने योग्य हैं।
padhkar mood guljarish ho gaya :)
जवाब देंहटाएंचुपके से खोलना यह बंद कमरा
जवाब देंहटाएंकि पिछले मौसमों से बचा-बचा कर
थोड़े एहसास रखे हैं तुम्हारे लिए।
बहुत ही खुबसूरत कविता ........दीपिका जी,
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति | मेरे दिल को झकझोर कर रख दिया आपकी कविता ने | बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत खूब वहा वहा क्या बात है
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट आज के (२१ फ़रवरी २०१३) Bulletinofblog पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
जवाब देंहटाएंस्मृति के पहरेदार हैं ये पुरानी चीजे जो यादो को संभल कर रखती हैं
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
recent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
behad khoobsurat ehsason se saji rachna..
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंपन्ना दर पन्ना खोलना
जवाब देंहटाएंमाज़ी की हसीन किताब
कि सलवटों में पड़े सूखे फूलों में
महक अभी बाकी होगी।
bahut achha likha hai
neeraj 'neer'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)
निःशब्द... हर एक लफ्ज़ जैसे दिल से निकल दिल में समा गया. किसी के जाने के बाद उसकी उपस्थिति का अनुभव... बहुत भावपूर्ण.
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