पति से बिछुड़ी औरत
एक रद्दी किताब है
जो पढ़ी जा चुकी है
एक-एक पन्ना
और फेंक दी गई है दुछत्ती पर
धुंधला गए हैं उसके अक्षर
ज़िल्द के चिथड़े हो गए हैं।
पति से बिछुड़ी औरत
एक घायल सिपाही है।
उसके हथियार छीन लिए गए हैं
सिंदूर चूड़ियां बिछुवे,
इनके बगैर वह लड़ नहीं सकती।
उसे दिखाया नहीं गया
कोई और रस्ता।
उसके घर में
बाहर की ओर खुलने वाला दरवाजा
बंद हो गया है।
ढक दी गई है रोशनदान-खिड़कियां
परंपरा के मोटे परदों से।
पति से बिछुड़ी औरत
एक ज़िंदा सती है।
उसके सपनों का दाह-संस्कार नहीं हुआ
अपने अरमानों की राख
किसी गंगा में प्रवाहित नहीं की उसने
अब उसे कामनाओं की अग्नि-परीक्षा में
तप कर कुंदन बनना है।
पति से बिछुड़ी औरत
निगाहें नीची करके चलती है।
अपने कलंक से झुक गई है उसकी गर्दन
उसके खाते में पुण्य का बैलेंस इतना नहीं था
कि पति उसके माथे पर सिंदूर
और मुंह में आग रख सके।
अब उसे प्रायश्चित करना है उम्र भर।
पत्नी से बिछुड़ा आदमी
किसी बेस्ट सेलर का सेकेंड एडिशन है
नई जिल्द, नए कलेवर के साथ।
लोग देखते हैं उसे दिलचस्पी से
किसी खाली अलमारी में
उसे सजाने के ख्वाब देखते हैं।
पत्नी से बिछुड़ा आदमी
कर्मयोगी है,
वह संसार से भाग नहीं सकता
उसे जीवन पथ पर आगे बढ़ना है
नई उम्मीदों, नए हौसलों के साथ।
मृत्यु तो एक शाश्वत सत्य है
और... परिवर्तन प्रकृति का नियम।