इस ब्लॉग का शीर्षक महान संगीतकार भूपेन हजारिका को समर्पित है, जिन्होंने शायद पहली बार चाय बागान की खूबसूरती को इस सरल से गीत में ढाला था 'एक कली दो पत्तियां, नाजुक नाजुक उंगलियां'। कम ही लोगों को पता होगा कि बेहतरीन चाय के लिए एक पौधे से सिर्फ दो पत्तियां और एक कली तोड़ी जाती है।
काफी दिनों से ब्लॉग जगत से दूरी की वजह यह थी कि मेरे घर में एक नई खुशी की प्रतीक्षा हो रही थी। आखिरकार 25 दिसंबर 2012 को एक नन्हीं परी 'शरण्या' ने मेरे आंगन में प्रवेश किया। आप सभी से उसके लिए आशीर्वचनों की कामना करती हूं।