हल्के सिंदूरी आसमान में
उनींदा सा सूरज
जब पहली अंगड़ाई लेता है,
मेरी खिड़की के छज्जे पर
मैना का एक जोड़ा
अपने तीखे प्रेमालाप से
मेरे सपनों को झिंझोड़ डालता है।
गुस्से से भुनभुनाते होंठ
आंखें खुलते ही न जाने क्यों
“टू
फॉर ज्वॉय” बोल
जाते हैं।
मंद हवाओं की ताल पर
झरने का बेलौस संगीत
भोर का एकांत बिखेर देता है।
बर्फीले पानी में
नंगे बच्चों की छपाक-छई से
पसीज गए हैं मेरी आंखों में
कुछ ठिठुरे हुए लम्हे।
छलकते पानी के साथ
हवाओं में बिखर गई है
कुछ मासूम खिलखिलाहटें।
मन करता है
अंजुरी अंजुरी उलीच लाउं
फिर उसी झरने से
कुछ खोई हुई खिलखिलाहटें।
चाय की फैक्ट्री में ठीक आठ बजे उठता अलार्म
कच्चे घरों में हलचल मचा देता है।
चाय में रात की रोटी भिगोती अधीर उंगलियां
एक और लंबे दिन के लिए तैयार हैं।
वफादारी दिखाने को व्यग्र कुत्ता
चरमराते पत्तों की आवाज़ पर भी भौंकता है
नए नए पैरों से लड़खड़ाते हुए दौड़ता बछड़ा
रंभाती मां की आवाज़ सुन
चुपचाप उसके जीभ तले गर्दन रख देता है।
बिन बुलाए मेहमान सा
कभी भी बरस पड़ता
मेघ का टुकड़ा
टीन के छप्पर पर कितना शोर मचाता है।
आज भी कानों में
इस कदर गूंजता है वह शोर
कि भीड़ भरे शहर का सन्नाटा
अब चिढ़ाता है मुझे।
woww..बड़ी प्यारी सी कविता...गुजरे लम्हों की थोड़ी थोड़ी सी कसक लिए ..
जवाब देंहटाएंसब कुछ साकार हो गया आँखों के समक्ष और टीस अंदर तक महसूस हुई
{आज ही एक सहेली ने बताया उसकी ए.सी. के ऊपर मैना ने घोंसला बनाया है जिसमे अंडे से अब चूजे निकल आए हैं और हमने कहा...तुम तो रोज “टू फॉर ज्वॉय” देखती होगी,रोज दिन अच्छा गुजरेगा....:)}
गाँव की यादें बसी हैं रचना में ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा कविता |
जवाब देंहटाएंप्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण से उपजी आपकी कविता बेहद प्रभावशाली लगी।
जवाब देंहटाएंसोंधी खुशबू युक्त रचना
जवाब देंहटाएंचाय की फैक्ट्री में ठीक आठ बजे उठता अलार्म
जवाब देंहटाएंकच्चे घरों में हलचल मचा देता है।
चाय में रात की रोटी भिगोती अधीर उंगलियां
एक और लंबे दिन के लिए तैयार हैं।
...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना ..
पहाड़ पे जागी एक सुबह ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अलग अलग स्केच पर पहाड़ की तलहटी से उठाये चित्र ... लाजवाब अभिव्यक्ति ...
टू फॉर जॉय...........
जवाब देंहटाएंजोड़ा बना रहे...खुशियाँ बनी रहें....
बहुत सुन्दर रचना...बहुत कुछ कहती हुई.....
अनु
भीड़ भरे शहर का सन्नाटा अब चिढ़ाता है
जवाब देंहटाएंएक सच्चाई
YOUR PEOMS WERE PUBLISHED HERE http://www.apnimaati.com/2012/07/blog-post_04.html
जवाब देंहटाएंआज भी कानों में
जवाब देंहटाएंइस कदर गूंजता है वह शोर
कि भीड़ भरे शहर का सन्नाटा
अब चिढ़ाता है मुझे।
मिटटी की सोंधी महक है इस कविता में.
बधाई.
आज भी कानों में
जवाब देंहटाएंइस कदर गूंजता है वह शोर
कि भीड़ भरे शहर का सन्नाटा
अब चिढ़ाता है मुझे
straight and deep feelings
वफादारी दिखाने को व्यग्र कुत्ता
जवाब देंहटाएंचरमराते पत्तों की आवाज़ पर भी भौंकता है
लाजवाब बिम्ब प्रयोग करती हैं आप अपनी रचनाओं में। ब्लॉग जगत में इतनी गहराई से जाकर बिम्बों को पकड़ एक गंभीर कविता लिखने वाले उंगली पर गिने जा सकते हैं।
अगर सहमति हो तो आंच पर इसे चढ़ाऊं।
सहर्ष सहमति है मनोज जी..
हटाएंवफादारी दिखाने को व्यग्र कुत्ता
जवाब देंहटाएंचरमराते पत्तों की आवाज़ पर भी भौंकता है
नए नए पैरों से लड़खड़ाते हुए दौड़ता बछड़ा
रंभाती मां की आवाज़ सुन
चुपचाप उसके जीभ तले गर्दन रख देता है।
इन सहज पंक्तियों में छिपे गहन भाव ...
कभी मैना हमारा दिन कैसा बीतेगा तय करती थीं. उन दिनों की याद दिलाती कविता.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
bahut sundar kavita
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है जब आप चाय के बगानों का ज़िक्र करती हैं .....
जवाब देंहटाएंलेकिन ..''चाय की फैक्ट्री में ठीक आठ'' यहाँ से
ऐसा लगा जैसे दो अलग अलग कवितायेँ पढ़ रही हूँ ....
शोर में तलाशती खुशनुमा लम्हे लिए सुंदर सी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर/प्रभावी रचना....
जवाब देंहटाएंआदरणीया हीर जी से सहमत....
सादर बधाई स्वीकारें।
इस कदर गूंजता है वह शोर
जवाब देंहटाएंकि भीड़ भरे शहर का सन्नाटा
अब चिढ़ाता है मुझे।
...वाह! बहुत अच्छी लगी यह कविता।
खूबसूरती जब आसपास हो
जवाब देंहटाएंचाय के बागानो सी
सुंदर कवितायें बनती हैं
इसी तरह बूँद बूँद में।
वाह! अद्भुत
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दों का चयन ,सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में
जवाब देंहटाएंhttp://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
मधुर कोमल और नए प्रयोगों से अनूठी बन पडी है आपकी कविता ।
जवाब देंहटाएंJeevan ke kareeb le jati kavita.
जवाब देंहटाएं............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
अभिनव भाव का प्रयोग अच्छा लगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंहल्के सिंदूरी आसमान में
जवाब देंहटाएंउनींदा सा सूरज
जब पहली अंगड़ाई लेता है,
मेरी खिड़की के छज्जे पर
मैना का एक जोड़ा
अपने तीखे प्रेमालाप से
मेरे सपनों को झिंझोड़ डालता है।
गुस्से से भुनभुनाते होंठ
आंखें खुलते ही न जाने क्यों
“टू फॉर ज्वॉय” बोल जाते हैं।
दीपिका जी जब आपकी सोच और संवेदना को काव्यात्मक लय मिलती है तब एक उत्कृष्ट कविता जन्म लेती है जिसे पढ़कर मन सुखद अनुभूति से भर जाता है |
पहाड़ो वाली खुशनुमा सी सुबह और वैसी ही कविता...
जवाब देंहटाएंsundar prastuti ...!!
जवाब देंहटाएंटीन की छत पर शोर मचाते बादल। उस बारिश की आर्द्रता महसूस कराती रचना। अनुपम
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्ति ! बेहतरीन कविता
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