जनवरी 29, 2017

ग़ज़ल



काफी समय से ख़ामोश ब्लॉग पर एक नई शुरुआत कुछ तुकबंदियों के साथ...

याद चंचल हो गई
रात बेकल हो गई

इश्क का चर्चा चला
हवा संदल हो गई

ज़िक्र जब तेरा हुआ
आंख बादल हो गई

चाप सुनकर बेसबर
देख सांकल हो गई

ख्वाब की तन्हाई में
आज हलचल हो गई

एक ठिठकी सी ग़ज़ल
अब मुकम्मल हो गई