मई 20, 2020

मयकशी की बात रहने दीजिए


मयकशी की बात रहने दीजिए
हमें तो अरसा हुआ तौबा किए

होश में वो आएं जो मदहोश हों
तोहमतें मत अब लगाया कीजिए

चांद की तन्हाई उसको ही पता
साथ उसके रतजगे जिसने किए

फिक्र जिनको है फ़क़त रुसवाई की
ज़िक्र अब उनका भला क्या कीजिए

जिस्म तो बस धड़कनों का खेल है
यहां हम हैं रूह का सौदा किए

कौन सी उल्फ़त कहां की कुरबतें
बज़्म में उनकी खड़े हैं लब सिए

हसरतें ले जाओ, रहने दो मगर
मुख़्तसर से ख्वाब जो हमने जिए


मई 13, 2020

हक़


हटा दिए हैं मैंने खिड़कियों से
गहरे रंग के पर्दे
बेरोकटोक आता है अब
मुस्कुराता हुआ सूरज
शरमाता हुआ चांद।
मुझे मंज़ूर नहीं हवाओं का तुमसे गुजरकर पहुंचना मुझ तक
मंज़ूर नहीं कि कोई तय करे मेरे हिस्से की धूप
मेरे आंगन की बारिशें
मेरी चाय की शक्कर
मेरी लिपस्टिक का कलर

नहीं देना है मुझे अब
मुस्कुराने और गुनगुनाने का हिसाब
उदासियों और खामोशियों का जवाब
ज़िन्दगी और मेरे दरमियां
अब कोई बिचौलिया न हो...