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जुलाई 03, 2012

शोर



हल्के सिंदूरी आसमान में
उनींदा सा सूरज
जब पहली अंगड़ाई लेता है,
मेरी खिड़की के छज्जे पर
मैना का एक जोड़ा
अपने तीखे प्रेमालाप से
मेरे सपनों को झिंझोड़ डालता है।
गुस्से से भुनभुनाते होंठ
आंखें खुलते ही न जाने क्यों 
टू फॉर ज्वॉय बोल जाते हैं।

मंद हवाओं की ताल पर
झरने का बेलौस संगीत
भोर का एकांत बिखेर देता है।
बर्फीले पानी में
नंगे बच्चों की छपाक-छई से
पसीज गए हैं मेरी आंखों में
कुछ ठिठुरे हुए लम्हे।
छलकते पानी के साथ
हवाओं में बिखर गई है
कुछ मासूम खिलखिलाहटें।
मन करता है
अंजुरी अंजुरी उलीच लाउं
फिर उसी झरने से
कुछ खोई हुई खिलखिलाहटें।

चाय की फैक्ट्री में ठीक आठ बजे उठता अलार्म
कच्चे घरों में हलचल मचा देता है।
चाय में रात की रोटी भिगोती अधीर उंगलियां
एक और लंबे दिन के लिए तैयार हैं।
वफादारी दिखाने को व्यग्र कुत्ता
चरमराते पत्तों की आवाज़ पर भी भौंकता है
नए नए पैरों से लड़खड़ाते हुए दौड़ता बछड़ा
रंभाती मां की आवाज़ सुन
चुपचाप उसके जीभ तले गर्दन रख देता है।
बिन बुलाए मेहमान सा
कभी भी बरस पड़ता
मेघ का टुकड़ा
टीन के छप्पर पर कितना शोर मचाता है।
आज भी कानों में
इस कदर गूंजता है वह शोर
कि भीड़ भरे शहर का सन्नाटा
अब चिढ़ाता है मुझे।

फ़रवरी 20, 2012

हिसाब



जब बिछड़े थे पुरानी राहों से
तेरे कांधे पे ही
सर रख के रोए थे।
ऐ शहर
तेरा इतना एहसान तो है हम पर।
मगर सर्द रातों में अक्सर
घूरे में जलते पुआल
की नर्म आंच याद आती है
तो तेरे हीटर की गरमी
बस रह जाती है
बदन के आस-पास
और रूह ठंडी रह जाती है।

हां तेरी रातें अंधेरी नहीं होतीं
तभी तो तारों को भी
शर्म आती है यहां।
मगर नाजुक सी बाती में भीगी रात का नशा
पुरानी शराब सा चढ़ता है,
तेरी रोशन रातों को क्या पता !

अब तो तेरी धड़कनों में
मेरी सांसें यूं घुली हैं।
कि मेरी लकीरें,
तेरी हथेलियों में बनी हैं।
मगर पुरानी हवाओं की खुश्बू पर
मेरा कोई अख्तियार नहीं।
ये तुझसे जो आशनाई है
दरअसल उसी ने सिखाई है।

तेरी रवायतों से,
कोई शिकवा नहीं है मुझको।
मगर जिस दिन पुरानी यादें
मेरे ख्वाबों का बोझ उठाने
का मेहनताना मांगेंगी।
कच्ची पगडंडियां मेरे कदमों के
असली निशान ढूंढेंगी।
जिस दिन आईना
मेरे नकाब के पीछे
एक चेहरा खोजेगा।
जब एक रूठा गांव
मुझसे जवाब मांगेगा।
तू भी तैयार रहना ऐ शहर,
मुझे हिसाब देने के लिए।