हल्के सिंदूरी आसमान में
उनींदा सा सूरज
जब पहली अंगड़ाई लेता है,
मेरी खिड़की के छज्जे पर
मैना का एक जोड़ा
अपने तीखे प्रेमालाप से
मेरे सपनों को झिंझोड़ डालता है।
गुस्से से भुनभुनाते होंठ
आंखें खुलते ही न जाने क्यों
“टू
फॉर ज्वॉय” बोल
जाते हैं।
मंद हवाओं की ताल पर
झरने का बेलौस संगीत
भोर का एकांत बिखेर देता है।
बर्फीले पानी में
नंगे बच्चों की छपाक-छई से
पसीज गए हैं मेरी आंखों में
कुछ ठिठुरे हुए लम्हे।
छलकते पानी के साथ
हवाओं में बिखर गई है
कुछ मासूम खिलखिलाहटें।
मन करता है
अंजुरी अंजुरी उलीच लाउं
फिर उसी झरने से
कुछ खोई हुई खिलखिलाहटें।
चाय की फैक्ट्री में ठीक आठ बजे उठता अलार्म
कच्चे घरों में हलचल मचा देता है।
चाय में रात की रोटी भिगोती अधीर उंगलियां
एक और लंबे दिन के लिए तैयार हैं।
वफादारी दिखाने को व्यग्र कुत्ता
चरमराते पत्तों की आवाज़ पर भी भौंकता है
नए नए पैरों से लड़खड़ाते हुए दौड़ता बछड़ा
रंभाती मां की आवाज़ सुन
चुपचाप उसके जीभ तले गर्दन रख देता है।
बिन बुलाए मेहमान सा
कभी भी बरस पड़ता
मेघ का टुकड़ा
टीन के छप्पर पर कितना शोर मचाता है।
आज भी कानों में
इस कदर गूंजता है वह शोर
कि भीड़ भरे शहर का सन्नाटा
अब चिढ़ाता है मुझे।