जनवरी 27, 2012

कैनवास


दुनिया के हर रंग से बेखबर
एक कोने में चुपचाप खड़ा था
वह खाली कैनवास।

कुछ दूर टंगे थे
कुछ चंपई चेहरे
कुछ भूरी आंखें
रोज़ कुछ लकीरें उभरतीं
रोज कुछ रंग बिखरते
और तैयार होती एक मुकम्मल तस्वीर।
हसरत से देखता रहता
वह खाली कैनवास।

एक दिन खिड़कियां खुलीं
और अंदर घुस आया
धूप का एक शरारती टुकड़ा..
शबे-फ़ुरकत गुज़र चुकी थी।
आंखें मिचमिचाकर खुली ही थीं कि
जादुई उंगलियों ने प्यार से छुआ
खाली कैनवास को।

कुछ नक्‍श कुनमुनाए,
कुछ रंग चहके।
कलाकार ने पहना दिया उसे सुर्ख जोड़ा
और उसके बेवा सपने सुहागन हो गए।
अब तस्वीर बन चुका था
वह खाली कैनवास।

अब वह बेचारा नहीं, बेरंग नहीं
मगर फख्र से
अपने सीने पर बिखरे रंग
दुनिया को दिखाता कैनवास
अपनी पहचान खो चुका है।
लोग अब उसे तस्वीर कहते हैं।
क्या किसी ने देखा है,
तस्वीर के पीछे?
रंगों और लकीरों की जिम्मेदारी ढोता कैनवास
आज भी कहीं अकेला है।

17 टिप्‍पणियां:

  1. excellent!!!!
    बहुत लाजवाब रचना...
    कैनवास को जीवित कर दिया आपके शब्दों ने..
    सस्नेह.

    जवाब देंहटाएं
  2. zindgee bhee canvass se kam nahee
    bhinn rangon se sazee

    ant mein khaalee kee khaalee ....dhool mein miljaatee

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप की कृति "खाली कैनवास"पड़ी ,क्या अंदाज़े बयाँ है |
      रंग और लकीरों की जिमेदारी को ढोता हुआ कैनवास आज भी अकेला है |
      मैं एक नया ब्लोगेर हूँ ,आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं |
      मेरे ब्लॉग का पता है ---http//kumar2291937.blogspot.com

      हटाएं
  3. दुनिया के हर रंग से बेखबर
    एक कोने में चुपचाप खड़ा था
    वह खाली कैनवस।

    कुछ दूर टंगे थे
    कुछ चंपई चेहरे
    कुछ भूरी आंखें
    रोज़ कुछ लकीरें उभरतीं
    रोज कुछ रंग बिखरते
    और तैयार होती एक मुकम्मल तस्वीर।
    हसरत से देखता रहता
    वह खाली कैनवस।
    दीपिका जी बहुत ही सुन्दर कविता बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह जाती हैं रचना
    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।
    बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही बढ़िया ।

    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।


    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. हर कैनवास चाहता है कि कोई चित्रकार आये और जीवन को रंगों से भर दे। रंग निरर्थक लगने लगे तभी वह महसूस कर पाता है कि वह तो एक कैनवास है।

    जवाब देंहटाएं
  7. कलाकार ने पहना दिया उसे सुर्ख जोड़ा
    और उसके बेवा सपने सुहागन हो गए।

    कलि की दो पत्तीओं पर आज केनवास की उदासी बड़ी खूबसूरती से पेश की है !! बहुत सुन्दर !!

    जवाब देंहटाएं
  8. आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूँ । भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय कोलकाता में मैं भी अनुवादक बूँ । इसके पूर्व भारतीय वायु सेना में था । आपके पोस्ट पर आकर काफी खुशी हुई कि एक साथी तो मिला जो मेरा मनोबल बढाने में मदद करेगा । पोस्ट अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  9. क्या किसी ने देखा है,
    तस्वीर के पीछे?
    रंगों और लकीरों की जिम्मेदारी ढोता कैनवस
    आज भी कहीं अकेला है।

    सच है,
    कैनवास का निजी व्यक्तित्व ही कहां है ?
    लीक से हटकर , कुछ नई बात है कविता में !

    जवाब देंहटाएं
  10. कुछ नक्‍श कुनमुनाए,
    कुछ रंग चहके।
    कलाकार ने पहना दिया उसे सुर्ख जोड़ा
    और उसके बेवा सपने सुहागन हो गए।
    अब तस्वीर बन चुका था
    वह खाली कैनवास।...bahut hi badhiyaa

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर रचना, प्रस्तुति पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी.,

    welcome to my post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर अभिव्यक्ति.....
    सराहनीय....बधाई....
    कृपया इसे भी पढ़े
    नेता,कुत्ता और वेश्या

    जवाब देंहटाएं
  13. कभी कभी चाहतों के कारण अपना वजूद खत्म हो जाता है ..कैनवास के ज़रिये आपने सार्थक सन्देश दिया है ..
    गहन अभिव्यक्ति ..

    आप मेरे ब्लॉग पर आयीं ..बहुत बहुत शुक्रिया .. आपकी सुन्दर रचना पढ़ने का मुझे अवसर मिला ..बाकी रचनाएँ भी पढूंगी ..

    जवाब देंहटाएं
  14. सुंदर रचना, प्रस्तुति पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी|

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहतरीन अभिव्यक्ति , सशक्त लेखनी है आपकी ...और कल्पना ... लाजवाब....

    जवाब देंहटाएं