जनवरी 09, 2012

सिपाही की बेटी का ख़त


पापा, जो गुड़िया आप
लाए थे पिछली बार
वो आज भी मैंने
रखी है बड़े जतन से
उसका ख्याल रखा मन से
पर वो बहुत पुरानी हो गई है
शन्‍नो की गुड़िया बिल्कुल नई है
मेरी गुड़िया के सुनहरे बाल
अब बन गए हैं जाले
ठुकरा गए हैं उसको
गुड्डे के घर वाले
उसकी सगाई जब टूटी
मैं फूट फूट कर रोई
रानो का गुड्डा तो
बड़ा ही सजीला है
टोपी ऐनक में
साहब सा लगता है
कब नई गुड़िया लाओगे
पापा तुम कब आओगे?

पप्पू की शरारतों से
हर कोई परेशान है
इतना भी वह छोटा नहीं
बस दिखने में नादान है
मां कुछ नहीं कहती है
बस खोई-खोई रहती है
जो शिकायत करो तो
उनकी आंख भर आती हैं
फिर भीगी पलकों से
जाने कैसे मुस्काती हैं
उन गीली आंखों से
बड़ा डर लगता है।
जाने क्यों उनमें
आपका चेहरा दिखता है।

मेरी शिकायतों का
उनसे जिक्र न करना
पापा, आप घर की
बिल्कुल फिक्र न करना।
आपकी गुड़िया बड़ी हो गई है
तीसरी कक्षा में अव्वल रही है
मां का, पप्पू का ख्याल रखूंगी।
मैं सब संभाल लूंगी।
आप अपना ध्यान रखना
रोज़ एक ख़त लिखना
वरना डांट बहुत खाओगे
मगर..पापा तुम कब आओगे?

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर..
    आँखें नम कर दीं आपने..
    बचपन का वो गीत याद आ गया..
    सात समंदर पार से..
    गुड़ियों के बाजार से..
    गुडिया चाहे ना लाना..
    पापा जल्दी आ जाना..

    बहुत प्यारी रचना...

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  2. उत्तर
    1. शुक्रिया रश्‍िम जी। अपने ब्लॉग पर जगह देने के लिए आभार

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति बढ़िया रचना,....बेहतरीन पोस्ट
    पहली बार आपके पोस्ट आया आना सार्थक रहा,
    मै समर्थक (फालोवर)बन रहा हूँ आप भी बने तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,
    welcome to new post --"काव्यान्जलि"--

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    उत्तर
    1. धन्यवाद, आपके ब्लॉग पर भी जरूर जाना होगा..

      हटाएं
  4. आप अपना ध्यान रखना
    रोज़ एक ख़त लिखना
    वरना डांट बहुत खाओगे
    मगर..पापा तुम कब आओगे?
    सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत सुन्दर रचना , बधाई.

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  5. बेहतरीन पोस्ट
    बहुत खुबसूरत रचना के लिए बधाई
    नववर्ष की शुभ कामनाये

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  6. कविता अच्छी लगी । ङम दोनों आज से एक डाल के पंक्षी बन गए हैं। मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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  7. रोज एक खत लिखना
    वरना डांट बहुत खाओगे
    मगर..पापा तुम कब आओगे?

    एक संवेदनशील मन द्वारा लिखी गई संवेदनशील रचना।
    अंतिम पंक्तियां मार्मिक हैं।

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  8. मेरी शिकायतों का
    उनसे जिक्र न करना
    पापा, आप घर की
    बिल्कुल फिक्र न करना।

    it is awsom mem ....i hav no words to say ...just superb n this lines touch me!!!

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  9. आपकी रचना तो भावुक कर गई !
    बहुत सुन्दर भाव से लिखी हुई है !
    शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको !
    मेरे ब्लॉग पे आपका इन्तजार रहेगा !

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  10. .एक अतिसंवेदनशील रचना जो निशब्द कर देती है

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  11. दीपिका जी को प्रणाम...नेट पर बहुत कम समय दे पाता हूँ| आपका लगातार मिलता स्नेह, अभिभूत किए रहता है| आज आपके दिये लिंक पर आने से रोक न सका खुद को और अब इस अद्भुत कविता को पढ़कर आँखें नम किए सोच रहा हूँ कि ये कविता मैंने क्यों नहीं लिखी ...इजाजत हो तो इसकी एक कॉपी अपने पास सेव करके रख लूँ?

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