चांद खिड़की पर खड़ा था
मगर अंधेरा बड़ा था
चांदनी थी कसमसाती
रात का पहरा कड़ा था
उन चरागों को कहें क्या
ज़ोर जिनका इक ज़रा था
जब सुलगती थी हवा भी
हिज्र का मौसम बुरा था
पुराना इक ख़त गुलाबी
मेज़ पर औंधा पड़ा था
टीस रह रह कर उठी थी
जख्म अब तक भी हरा था
नींद पलकों से उड़ी थी
रंग ख्वाबों का उड़ा था
इस अंधेरी रात से पर
भोर का सपना जुड़ा था
छोटी बहर में प्यारी गज़ल... जो मुझे बहुत करीब से जानते हैं उन्हें पता है कि मैं इस प्रकार की ग़ज़लों को इर्ष्या से देखता हूँ, क्योंकि मैं चाहकर भी इस बहर में गज़ल नहीं कह पाता.
जवाब देंहटाएंसारे अशार लाजवाब हैं... ज़रा सा शिल्प में भटकाव है, समेट लिया तो सुन्दरता और बढ जाएगी! मेरी ओर से बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
हौसलाअफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। उससे भी ज्यादा शुक्रिया कमियां बताने का। और कमियों का जिक्र यहीं कमेंट में कर दिया करें। अभी सीख ही रही हूं, ढेर सारी कमियां होती हैं। मुझे अच्छा लगता है जब कोई बिना समझे वाह करने की बजाय कमजोरियां बताए। यहां लगाने का मकसद ही यही होता है कि अनुभवी लोगों से कुछ सीखने को मिले। वरना तो गोल-गोल ही घूमते रहेंगे। आपका संशोधन बहुत बढ़िया था। उन संशोधनों के साथ ग़ज़ल को फेसबुक पर चस्पा कर दिया :)
हटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
दीपिका जी ,सलिल जी के निर्देशानुसार गज़ल के संशोधित रूप को यहीं साथ में देतीं तो अच्छा था । वैसे बहुत बढ़िया रचना है ।
जवाब देंहटाएंसलिल जी द्वारा संशोधित शेर -
जवाब देंहटाएंचांद खिड़की पर खड़ा था
फिर भी अंधेरा बड़ा था
उन चरागों को कहें क्या
ज़ोर जिनका बस ज़रा था
इक पुराना ख़त गुलाबी,
मेज पर औंधा पड़ा था
टीस रहरहकर उठी थी,
ज़ख़्म भी अब तक हरा था
छोटी बहार में सुन्दर ग़ज़ल ... सलिल जी ने संवार दिए हैं शेर ... मज़ा आ गया ...
जवाब देंहटाएंक्या दमदार शेर है. बहुत भाव भरा भी
जवाब देंहटाएं-जब सुलगती थी हवा भी
हिज्र का मौसम बुरा था
ब्लॉग बुलेटिन की 900 वीं बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन और मेरी महबूबा - 900वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर गजल लिखी है आपने. संशोधनों के बाद वह और भी बढ गई है. मेरा अनुभव है कि गजल या कविता को यदि लिखने के बाद थोडा सा गुनगुना कर देखें तो जहाँ भी कुछ अटकाव जैसा होगा वह अनुभव कर लीजिएगा और फिर आप स्वत: संशोधन करने में सक्षम होंगी. मैं कई बार कविताओं की एडीटिंग करते समय यह तरीका अख्तियार करता हूँ.
जवाब देंहटाएंVery nice.Sharing on fb:)
जवाब देंहटाएंसुकुमार भावाभिव्यक्ति को सलिल ने ज़रा सँवार दिया लालित्य और बढ़ गया - बधाई दोनो को !
जवाब देंहटाएंइस अंधेरी रात से पर
जवाब देंहटाएंभोर का सपना जुड़ा था
बेहद सुंदर रचना , बधाई स्वीकारें
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंचांद खिड़की पर खड़ा था
जवाब देंहटाएंमगर अंधेरा बड़ा था....
wah wah bahut khoob
नींद पलकों से उड़ी थी
जवाब देंहटाएंरंग ख्वाबों का उड़ा था
क्या ख़ूब लिखा है।
आप और सलिल गुरु दोनों कमाल..!
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