मार्च 02, 2012

वह कौन सा मौसम था?


अलसाया सा दिन पड़ा था,
बादलों की रजाई ओढ़कर।
हांफ रही थी धूप
किसी बूढ़ी भिखारन सी।
हां, वो सर्दियां ही थीं शायद
जब हम मिले थे पहली बार,
मुझे याद है वो कंपकंपाना...
और पूरे बदन का सिहरना।

या वह वसंत था!
क्या तुमने भी सुनी थी,
कलियों के चटकने की आवाज़?
हवाओं की महक,
जब सांसों में भर आई थी।
कहीं पास बुलबुल भी चहकी थी।

या वह था तुम्हारा फेवरिट
बारिशों का मौसम,
जब गीले जज्बातों को
टांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,
मेरी आंखों का खारा पानी
तुम्हारे होठों पर भी था।

वो दिन गर्मियों के तो नहीं थे?
याद है, कितनी तेज़ थी प्यास।
पसीजती हथेलियों में
चंद वादे रखे थे तुमने।
वह पहला तोहफा
अब तक बंद है मेरी मुट्ठी में।

जिस लम्हा तुमने
सारे मौसम मेरे नाम किए थे,
तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
उसी एक पल में,
और बस कह दिया है
स्टैच्यू!

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत कविता दीपिका जी |होली की रंग बिरंगी शुभकामनायें |

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  2. जिस लम्हा तुमने
    सारे मौसम मेरे नाम किए थे,
    तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
    उसी एक पल में,
    और बस कह दिया है
    स्टैच्यू!
    वाह - स्टैच्यू!

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  3. उम्दा कविता |होली की शुभकामनाएं |

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  4. वाह...
    थमा रहे वो पल....
    कभी कोई over ना कहे...

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन रचना,..

    NEW POST...फिर से आई होली...

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  6. जब गीले जज्बातों को
    टांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,

    बेहद ख़ूबसूरत कविता....बरबस वाह निकल पड़ा मुख से

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  7. प्रेम के रंग में सारे मौसम रंग दिए..वाह !

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  8. जिस लम्हा तुमने
    सारे मौसम मेरे नाम किए थे,
    तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
    उसी एक पल में,
    और बस कह दिया है
    स्टैच्यू!

    मौसम अर्पित करने के बदले किसी को कैद कर स्टैच्यू बना देना...
    वाह, कितने खूबसूरत भाव और कितने सुंदर शब्द !

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  9. बेहतरीन कविता है। कल ही रश्मि जी ने फेसबुक पर टैग करके पढवाया था, आज फिर पढ़ रहा हूं। अच्छा लिखा है।

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  10. मैंने तो कल ही पढ़ लिया था ये कविता और यकीन मानिए इस लाईने ने तो कत्ल कर दिया बिलकुल -
    "या वह था तुम्हारा फेवरिट
    बारिशों का मौसम,
    जब गीले जज्बातों को
    टांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,
    मेरी आंखों का खारा पानी
    तुम्हारे होठों पर भी था।"

    :)

    और वो आखिर वाला स्टैच्यू!!! कमाल :)

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  11. स्मृति का वह लम्हा प्रतिमा बनकर स्थिर रह गया ...
    सुन्दर भाव !

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  12. बहुत सुन्दर रचना है आपकी...

    बहुत ही अच्छी लगी..

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  13. बहुत ही प्यारी रचना है दीपिका,बधाई आप को

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  14. वो दिन गर्मियों के तो नहीं थे?
    याद है, कितनी तेज़ थी प्यास।
    पसीजती हथेलियों में
    चंद वादे रखे थे तुमने।
    वह पहला तोहफा
    अब तक बंद है मेरी मुट्ठी में।

    बहुत सुंदर रचना !!!

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  15. बहुत ही प्यारी रचना है सुन्दर भाव,दीपिका,बधाई

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  16. bahut hi sundar bhavabhivyakti hai aapki...holi ki shubhkamnayen...

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  17. सचमुच खूबसूरत पलों को हम ‘स्टैच्यू’ करना चाहते हैं।
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति और अद्भुत कथन भंगिमा है।बधाई आपको ।

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  18. जिस लम्हा तुमने
    सारे मौसम मेरे नाम किए थे,
    तुम्हें कैद कर लिया है मैंने
    उसी एक पल में,
    और बस कह दिया है
    स्टैच्यू!
    अति सुन्दर भाव बोध की रचना .एक शब्द चित्र भाव का बुनती सी .

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  19. या वह था तुम्हारा फेवरिट
    बारिशों का मौसम,
    जब गीले जज्बातों को
    टांग दिया था उम्मीदों की रस्सी पर,
    मेरी आंखों का खारा पानी
    तुम्हारे होठों पर भी था।
    ...
    प्रेम ऐसे ही किसी पागलपन का नाम है !!!

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  20. एक दशक के बाद इस कविता की रूमानियत बढ़ गई है।

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