सूरज सी दहकती हैं
मेरी धड़कनें
चांदनी में निचोड़कर
माथे पर रखो
ठंडी रात...
गर्म सांसों को
आराम आ जाए।
सरकने दो रात को
आहिस्ता आहिस्ता
चांद आता रहे खिड़की से
थोड़ा थोड़ा
बंद किवाड़ों से भी
आ ही जाएगा सूरज
बांट लेते हैं तब तक
आधी आधी रात
आधा आधा चांद
सुबह हिसाब कर लेंगे।
रात के होठों पर चुप सी लगी है
आंखें बोझिल हैं चांद की
आज की रात
बोलनें दें खामोशियों को
अपने अपने हिस्से के आसमान में
कोई टूटता तारा ढूंढें
कोई रूठी हुई मन्नत
शायद पूरी हो जाए।
बिखरने की आदत है,
यूं समेट लो मुझको
कि सहर होने तक
समूचा रहे जिस्म,
साबुत हो रूह
रतजगे बहुत हुए
आज सोने का मन है
सिरहाने रोना मत ऐ दोस्त
ख्वाब गीले हो जाएंगे।