नाजों से खेली हो
पहाड़ों की गोद में।
लाड़ से पाला है हिमालय ने तुम्हें,
ऊंचे चीड़ों ने
छुपा कर रखा है,
सूरज की बुरी नज़र से।
पर कहां बंधन मानती हैं
तुम्हारी लहरें।
ठहर कर सोचना
तो तुम्हें आता ही नहीं।
शोखी का दूसरा नाम हो तुम।
जब उतरती हो पहाड़ों से,
कूदती, इठलाती, बलखाती।
किनारों को छूकर
यूं सर्र से निकल जाती।
मुझे पकड़ो तो जानें
कहकर शायद जीभ चिढ़ाती।
कदमों में पड़ी हर शै को ठुकराती।
तुम्हारा गुरूर सर आंखों पर।
कितनी हसरत से देखता है तुम्हें
वह दीवाना पुल
रोज गुजरते हुए।
न वह झुकता है,
न तुम हाथ बढ़ाती हो।
उसकी तरसती निगाहों के नीचे से
चुपचाप निकल जाती हो।
तुम जानती हो अपनी हदें।
तुम्हारी हर बात बेमिसाल है।
रंगित के साथ
लौट आता है तुम्हारा बचपन
सहेलियों सी गले मिलती, खिलखिलाती
बढ़ती जाती हो आगे
रुकना तुम्हारी आदत कहां।
कभी मुग्ध, कभी स्तब्ध करता है
तुम्हारा उफनता यौवन।
बुरुंश के सुर्ख श्रृंगार से
तुम्हारी हरी काया
और भी खिल उठती है।
तुम जानती हो
कहीं कोई इंतज़ार में है तुम्हारे।
तुम्हारी दीवानगी
नहीं जानती सीमाएं।
पहाड़ों की, मैदानों की, मज़हबों की, मुल्कों की।
बस एक ही धुन है,
एक ही मुस्तकबिल।
जब तुम्हारी आहट पाकर
वह बेताब हो उठता है,
तुम्हें समेटने को।
और तुम अधीर सी
समा जाती हो,
ब्रह्मपुत्र की बाहों में
तो यह ख्याल आता है
कि तुम तीस्ता हो,
या खामोश इश्क की एक दास्तान!
तीस्ता नदी भारत के सिक्किम की लाइफलाइन कही जाती है, यह खूबसूरत नदी इस छोटे से राज्य को एक अद्वितीय आकर्षण देती है। वह सिक्किम का पूरा सफर तय करके नीचे उतरते हुए पश्चिम बंगाल की सीमा से बाहर निकलकर बंगलादेश में ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। रंगित उसकी एक मुख्य उप नदी है।