अगस्त 12, 2013

कवि और कमली

कमली एक बार फिर से...


तुम श्रृंगार के कवि हो
मुंह में कल्पना का पान दबाकर
कोई रंगीन कविता थूकना चाहते हो।
प्रेरणा की तलाश में
टेढ़ी नज़रों से
यहां-वहां झांकते हो।
अखबार के चटपटे पन्‍नों पर
कोई हसीन ख्वाब तलाशते हो।

तुम श्रृंगार के कवि हो
भूख पर, देश पर लिखना
तुम्हारा काम नहीं।
क्रांति की आवाज उठाने का
ठेका नहीं लिया तुमने।
तुम प्रेम कविता ही लिखो
मगर इस बार कल्पना की जगह
हकीकत में रंग भरो।
वहीं पड़ोस की झुग्गी में
कहीं कमली रहती है।
ध्यान से देखो
तुम्हारी नायिका से
उसकी शक्ल मिलती है।

अभी कदम ही रखा है उसने
सोलहवें साल में।
बड़ी बड़ी आंखों में
छोटे छोटे सपने हैं,
जिन्हें धुआं होकर बादल बनते
तुमने नहीं देखा होगा।
रूखे काले बालों में
ज़िन्दगी की उलझनें हैं,
अपनी कविता में
उन्हें सुलझाओ तो ज़रा!

चुपके से कश भर लेती है
बाप की अधजली बीड़ी का
आग को आग से बुझाने की कोशिश
नाकाम रहती है।
उसकी झुग्गी में
जब से दो और पेट जन्मे हैं,
बंगलों की जूठन में,
उसका हिस्सा कम हो गया है।

तुम्हारी नज़रों में वह हसीन नहीं
मगर बंगलों के आदमखोर रईस
उसे आंखों आंखों में निगल जाते हैं
उसकी झुग्गी के आगे
उनकी कारें रेंग रेंग कर चलती हैं।
वे उसे छूना चाहते हैं
भभोड़ना चाहते हैं उसका गर्म गोश्‍त।
सिगरेट की तरह उसे पी कर
उसके तिल तिल जलते सपनों की राख
झाड़ देना चाहते हैं ऐशट्रे में।

उन्हें वह बदसूरत नहीं दिखती
नहीं दिखते उसके गंदे नाखून।
उन्हें परहेज नहीं,
उसके मुंह से आती बीड़ी की बास से।
तो तुम्हारी कविता
क्यों घबराती है कमली से।
इस षोडशी पर....
कोई प्रेम गीत लिखो न कवि!

19 टिप्‍पणियां:

  1. कवि के पास कहाँ है ऐसे शब्द,
    कि कमली पर प्रेम गीत लिखा जा सके....
    :-(

    अनु

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  2. उसकी कल्पनाओं में भी वही सौन्दर्य है जो बाहर दिखता है,जिसे लिखकर तुम खुद को श्रृंगार के रचयिता समझते हो

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  3. समाज की मानसिकता पर गहरा कटाक्ष करती गहन रचना ।

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  4. आपकी यह रचना कल मंगलवार (12-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  5. अद्यतनीय भारत में भी अस्पृश्यता, अपने यथा स्वरूप में स्थित है, अंतर केवल यह है कि पूर्व में यह जाति एवं वर्ण पर आधारित थी, वर्तमान में इसका आधार आर्थिक हो गया है.....

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  6. वैसे तो कविता लेखन में काफी विविधता आयी है पिछले कई दशकों में पर मंच पर कविता पाठ में आज भी रसीले काव्य का का बोलबाला है. हो भी क्यों ना हमारे कवि पूर्वजों ने तो यही सिखाया है सदियों से. बहुत बढ़िया लिखा है.

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  7. वाह बहुत स्पष्टता से अपनी बात व्यक्त की है और काव्यात्मकता एवं रोचकता दो बनी रही . उठाये गए विषय से भी मैं पूर्णतः सहमती रखता हूँ , कवि हो तो समाज एवं देश के तात्कालिक परिस्थितियों से अपने आपको विलग रखकर सिर्फ नायिका के नैनों में खोये रहना तुम्हारा कर्म नहीं . कोई व्यक्ति कवि तभी हो सकता है जब वह बहुत संवेदनशील हो और जब व्यक्ति संवेदनशील होगा तो देशकाल की परिस्थितियों से अछूता कैसे रह सकता है .. मुझे आपकी कविता अच्छी लगी ..

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  8. तीखी बात खड़ी मिर्च का स्वाद कहती

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  9. तो तुम्हारी कविता
    क्यों घबराती है कमली से।
    इस षोडशी पर....
    कोई प्रेम गीत लिखो न कवि!...लाजवाब

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  10. झकझोरने वाली कविता

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  11. बात तो दुरुस्त है...खाए पिेए अघाए कवि इस कमली पर प्रेम कविता लिखेंगे नहीं...औऱ उस कमली के आसपास कोई ऐसा कवि होगा बी तो गरीबी..भूख ने उसे इस लायक नहीं छोड़ा होगा कि वो इस कमली को लेकर अगर उसके अंदर कुछ है तो उसे एक प्रेम कविता में तब्दील कर सके...जाहिर है बाहर वाले कवि को उसकी गरीबी दिखेगी जिसपर वो भावनाओं से भर कर कविता लिखेगा ..समाज को गाली देगा ..सरकार को कोसेगा...पर उसके गरीब से अटे परिवेश को चीर कर अंदर की भावना को शब्द नहीं देगा। और पास का कवि गरीबी की मार से शब्द भूल चुका होगा.

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  12. पहले भी पढ़ा था और दोबारा पढ़कर भी उतनी ही पसंद आयी।

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  13. कटु सत्य कहती ,बेहद भावपूर्ण रचना..

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  14. तो क्या यह मान लें कि श्रृंगार के कवि को झकझोरती यह एक आंदोलनकारी कवि की क्रांतिकारी कविता है?

    बीड़ी फूँकती, गंधाते मुंह वाली, दरिद्र षोडशी ने क्या पड़ोस के आदमखोर रईस के 'दो और' बच्चे जन दिए? या कि दो दरिद्रों ने दरिद्रता की कड़ी लंबी कर दी? कौन उसे भभोड़ना चाहता है, यह बाद का प्रश्न है. अब तक किसने उसे भंभोड़ा,वह प्रश्न पहला है.

    जब तक दरिद्रता का फलसफा रईसी में तलाशा जाएगा,कविता कविता नहीं, प्रोपगैंडा माना जाएगा.

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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