दिसंबर 08, 2012

चांदनी गीली है...



खिड़की पर चांद है
भीतर स्याह रात
रोशनी और सियाही में
हाथ भर का फासला है
खोल दे खिड़कियां
खींच ला चांद कमरे में
इंतज़ार बहुत हुआ
रात गुज़र जाने का।

चांद के साथ
गलबहियां डाले
उसी झरने के पास
बैठे रहें चुपचाप।
घुलती रहे रात
आहिस्ता आहिस्ता
चांदनी के प्याले में
आखिरी घूंट तक
और वक्‍त गुज़र जाए
फिर सहर होने तक।

तेरी चांदनी के सफहों पर
मन की स्याही से
हर रात लिखा करते थे
अपनी मुस्कुराहटें
अपनी उदासियां
आज जब शहर की रोशनियों में
तेरा अक्स फीका सा लगता है
बहुमंजिला इमारत की छत से
तू और दूर नजर आता है
मेरा बावरा मन
फिर वही मासूम चांद चाहता है
शायद तुझे भी है खबर
कि आज मेरे जज्बात सीले हैं
तभी तू रोया है शायद
आज बरसों बाद चांदनी गीली है.......

30 टिप्‍पणियां:

  1. चाँद बुलाता, बस आ जाओ,
    देखो मैं अब भी शीतल हूँ।

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  2. सुन्दर.....
    भीगी सी नज़्म....

    अनु

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  3. खोल दे खिड़कियां
    खींच ला चांद कमरे में
    इंतज़ार बहुत हुआ
    रात गुज़र जाने का।

    क्या अंदाज़ है अपनी बात कहने का, आपकी इस बेहतरीन रचना के क्या कहने। सचमुच बहुत अच्छी लगी। वैसे भी आपकी लेखन शैली मुझे बहुत भाती है। इसी तरह लिखती रहें बस यही दुआ है।

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  4. आपकी इस कविता को पढ़कर ये गीत याद आ रहा है

    घूँट चाँदनी पी है हमने
    बात कुफ्र की, की है हमने..

    वैसे भी जब अपनी खिड़की से तनहा चाँद को देख ते हैं तो अपनी जिंदगी की तनहाई मानो चाँद रूपी शीशे में रह-रह कर उभरने लगती है । इसीलिए तो कहा है किसी ने

    चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
    कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले

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  5. आज मेरे जज्बात सीले हैं
    तभी तू रोया है शायद
    आज बरसों बाद चांदनी गीली है.......शानदार अभिव्यक्ति बधाई ।

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  6. अंतिम पंक्तियाँ बेहतरीन हैं!
    बहुत खूब...

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  7. तेरी चांदनी के सफहों पर
    मन की स्याही से
    हर रात लिखा करते थे
    अपनी मुस्कुराहटें
    अपनी उदासियां
    आज जब शहर की रोशनियों में
    तेरा अक्स फीका सा लगता है
    बहुमंजिला इमारत की छत से
    तू और दूर नजर आता है
    मेरा बावरा मन
    फिर वही मासूम चांद चाहता है
    शायद तुझे भी है खबर
    कि आज मेरे जज्बात सीले हैं
    तभी तू रोया है शायद
    आज बरसों बाद चांदनी गीली है.......
    पूरी कविता ही अच्छी है |बहुत दिनों बाद ताजगी से रची -बसी कोई कविता पढने को मिली |आपका दिन शुभ हो |

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  8. फिर वही मासूम चांद चाहता है
    शायद तुझे भी है खबर
    कि आज मेरे जज्बात सीले हैं
    तभी तू रोया है शायद
    आज बरसों बाद चांदनी गीली है..

    क्या अंदाज़ है

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  9. शायद तुझे भी है खबर
    कि आज मेरे जज्बात सीले हैं
    तभी तू रोया है शायद
    आज बरसों बाद चांदनी गीली है...

    बेहतरीन अंदाज, सुंदर भाव और जानदार अभिव्यक्ति.

    बधाई दीपिका जी.

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  10. बहुत ही सुन्दर,कोमल
    और भावभीनी रचना...

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  11. चाँद गीला गीला है
    उसका दिल भी सीला है ....

    भीगे से जज़्बात .... सुंदर रचना

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  12. तभी तू रोया है शायद
    आज वर्षों बाद चाँदनी गीली है।
    ये आखिरी पंक्तियाँ मन हर लेती हैं । एकदम अद्भुत!

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  13. शायद तुझे भी है खबर
    कि आज मेरे जज्बात सीले हैं
    तभी तू रोया है शायद
    आज बरसों बाद चांदनी गीली है...

    अहसास की नमी से भीगे शब्द !

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  14. आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

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  15. गीली चाँदनी जैसे ही आपके भाव और वैसी ही ताजगी भरी अभिव्यक्ति । बहुत खूब दीपिका जी ।

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  16. सुन्दर भावपूर्ण रचना ।

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  17. चांदनी तो गीली है ही पर नमी ली हुई तो ये कविता भी है...सुंदर रचना।।।

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  18. एक भाव यह भी उस गीलेपन का ... बेहतरीन

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  19. संवेदनात्मक रुप से काफ़ी संश्लिष्ट और गहरी अनुभूति की अभिव्यक्ति है।
    मन भींग सा गया।

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  20. कभी-कभी कुछ कहना मुहाल हो जाता है ..यही हाल है..शायद मन गीला है या जाने आज अमावस की राद है

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  21. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  22. भावो के साथ, शब्‍दों की जादूगरी है इसमें, वाह.
    आरंभ : चोर ले मोटरा उतियइल

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  23. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .

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  24. आपकी जितनी रचनाएँ पढ़ी, सब एक से एक बेहतरीन हैं!

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  25. khol de khidkiya aur kheench la chaad kamre me, bahut sunder.

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  26. jab dil chandani sa sajal ho.. Tabhi nigahen chandani ko dhundhati hain..
    Warna to chand maheene me 26 din hamare chhat se gujarata hai aur hum najar utha kar dekhate tak nahi..

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